नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को एक मामले की सुनवाई में महिला द्वारा पति से गुजारा भत्ता के रूप में 500 करोड़ रुपये दिलाने की मांग की गई। अदालत ने दावे को दरकिनार करते हुए पति को 12 करोड़ रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने एक-दूसरे से अलग रह रहे जोड़े के विवाह को भंग कर दिया और कहा कि अब इसमें इतनी दरार आ गई है, जिसे भरा नहीं जा सकता। महिला ने दावा किया था कि अमेरिका और भारत में कई व्यवसाय वाले उसके पति की कुल परिसंपत्ति करीब 5000 करोड़ रुपये है। पूर्व पत्नी से अलगाव होने पर 500 करोड़ रुपये का भुगतान किया था। इसलिए उसे भी इतनी ही रकम दी जाए। इस पर पीठ ने कहा कि अक्सर देखा गया है कि गुजारा भत्ता के लिए आवेदन के समय जीवनसाथी की संपत्ति, स्थिति और आय बताई जाती है और ऐसी रकम मांग ली जाती है जो उसकी संपत्ति के बराबर हो। इस प्रथा में असंगति है।
अगर दुर्भाग्यवश अलगाव के बाद पति कंगाल हो जाता है तब भी क्या पत्नी संपत्ति में बराबरी की मांग के लिए तैयार होगी। गुजारा भत्ता कई चीजों पर निर्भर करता है और इसका कोई सीधा नियम नहीं हो सकता। इस मामले में पति ने सभी दावों को खत्म करने के लिए आठ करोड़ रुपये के भुगतान पर सहमति जताई।
लेकिन पीठ ने कहा कि इससे पूर्व पुणे की अदालत ने 10 करोड़ रुपये गुजारा भत्ता का आकलन किया है, जिसे स्वीकार किया जाता है और दो करोड़ रुपये याचिकाकर्ता को एक फ्लैट खरीदने के लिए अलग से दिए जाएं। हालांकि, इस दौरान पीठ ने कहा कि वैवाहिक विवादों से जुड़ी अधिकांश शिकायतों में दुष्कर्म, आपराधिक धमकी और विवाहिता के साथ क्रूरता करने समेत आइपीसी की धाराओं को लगाने की प्रवृत्ति देखी गई है और कई बार इसकी निंदा भी की जा चुकी है। महिलाओं को इस तथ्य को ध्यान में रखना चाहिए कि उन्हें मिले कानून के ये सख्त प्रावधान उनके कल्याण के लिए फायदेमंद हैं, ना कि पतियों को दंड देने, धमकाने, हावी होने या जबरन वसूली के लिए मिले अधिकार। कभी-कभी महिलाएं उनकी सुरक्षा और सशक्तीकरण के लिए बने कानूनों का दुरुपयोग करती हैं।