जांजगीर चांपा। श्री दूधाधारी मठ महोत्सव में श्रोताओं को राम कथा का रसपान कराते हुए अयोध्या धाम वासी अनंत श्री विभूषित श्री स्वामी रत्नेश प्रपन्नाचार्य जी महाराज ने कहा कि- भगवान अपनी सेवा से उतना प्रसन्न नहीं होते जितना अपने भक्तों की सेवा से ।इसलिए यदि सेवा ही करनी है तो भगवान के भक्तों की सेवा करो! संत महात्माओं की सेवा करो! व्यक्ति का गुण ही उसे महान बनाता है। साधु वह है जिसमें साधुता होती है। राजा को नीतिज्ञ होना चाहिए। जिस राजा को नीति का ज्ञान नहीं होता वह नष्ट हो जाता है। ऊंचे पद पर बैठे हो तो चापलूसों से बचना चाहिए। विपक्षी की पूरी बातों को सुनकर कोई निर्णय लिया जाए वही निर्णय राष्ट्र हित में होता है। जिसे भगवान रघुनाथ जी और माता सीता प्रिय नहीं है उसका परित्याग कर देना चाहिए- जाके प्रिय न राम वैदेही। तजिय ताहि कोटि बैरी सम, यद्यपि परम सनेही। माता कैकई ने भगवान राम, सीता को वनवास दिया, महाराज भारत ने उसे माता कहना ही बंद कर दिया?। दुष्ट व्यक्ति कभी किसी का हित नहीं कर सकता। कुसंग आपको उसी की तरह बना देता है। संसार में पुत्रवती वही कहलाती है जिसका पुत्र रघुनाथ जी का भक्त हो- पुत्रवती जुबती जग सोई, रघुपति भगति जासु सुत होई। संसार में बहुत से ऐसे लोग हुए जिन्होंने अपने सत्य की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। लेकिन श्री रामचंद्र जी दूसरों के सत्य की रक्षा करने के लिए वनवास चले गए। जीव अपने सत्य की रक्षा करता है परमात्मा सब के धर्म की रक्षा करते हैं। हम कितने दीर्घ जीवी हैं यह महत्वपूर्ण नहीं है हम कितने दिव्य जीवी हैं यह बहुत महत्वपूर्ण है। वैष्णवों के जीवन में तीन अकर होने चाहिए- हम ठाकुर जी के भोग्य हैं, भगवान हमारे भोक्ता हैं। हम भगवान के ही शेष हैं उनके ही सेवक हैं तथा हम भगवान के ही योग्य हैं संसार में किसी के दोष को जानकर कोई उसे नहीं अपनाता! लेकिन हमारे सारे दोषों को जानकर भी केवल ठाकुर जी ही हमें स्वीकार कर सकते हैं। विद्वान आचार्य जी ने कहा कि- यह वही स्थल है जहां दूधाधारी महाराज रहते थे। जहां संत रहते हैं वहीं शांति रहती है। स्वच्छता होटल में भी मिल सकती है लेकिन पवित्रता मंदिर और आश्रम में ही होते हैं। जीवन के कितने दिन हैं कहना कठिन है लेकिन दो दिन निश्चित है एक वह दिन जिस दिन हमारा जन्म होता है और दूसरा वह दिन जिस दिन हमारी मृत्यु होती है। जीवन में यदि भक्ति मिल जाए और इस संसार से विदा होते समय अंत में राम का नाम मुख में आ जाए तो समझ लेना कि मनुष्य का तन धारण करना सार्थक हो गया। उन्होंने – राम का नाम लेकर जो मर जाएंगे। वो अमर नाम दुनिया में कर जाएंगे। गाकर लोगों को भाव विभोर कर दिया। मंच पर हमेशा की तरह महामंडलेश्वर राजेश्री महन्त रामसुन्दर दास जी महाराज विराजित थे।