रेलवे का अमृतकाल : स्टेशन को नया कलेवर देने करोड़ों का खर्च लेकिन नई गाडिय़ों को

तरसता कोरबास्टेशन के विकास पर हो रहे करोड़ों खर्च
कोरबा। सरकार ने अमृतकाल के अंतर्गत कई प्रकार के कार्यों को बढ़ावा देने पर जोर दिया है। विभिन्न योजनाओं पर अमृतकाल को लेकर ही फोकस है। दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के कोरबा स्टेशन को भी इसमें शामिल किया गया है। हैरान करने वाली बात यह है कि रेलवे के अमृतकाल में भी बी श्रेणी का कोरबा स्टेशन लंबी दूरी की रेलगाडिय़ों के लिए तरस रहा है और लोग रेलवे की इस रवैये से काफी नाखुश हैं।
लोकसभा चुनाव के दौरान कई मुद्दों पर सत्ताधारी पार्टी भाजपा लगातार प्रचार में जुटी हुई है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विषयों के अलावा क्षेत्रीय मसलों को उठाते हुए वोट की अपील जारी है। 400 पार का नारा भी इसी पर केंद्रित है। पूरे भरोसे के साथ कहा जा रहा है कि एक बार फिर देश नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने तैयार है और लोकसभा में अधिक सीटें मिल सकती है। छत्तीसगढ़ की 11 सीटों को जीतने का दावा भी इसी में शामिल है। बिलासपुर संभाग की कोरबा लोकसभा सीट सामान्य है, जिसमें घिसे-पिटे मुद्दों के साथ प्रचार चल रहा है। एक बात सबकी जानकारी में है कि दूसरे क्षेत्रों की तरह यहां भी चुनाव को मोदी के चेहरे पर लड़ा जा रहा है। महसूस किया जा रहा है कि तमाम तरह की उपलब्धियों और कई मोर्चे पर असफलता के बावजूद आम लोगों के हित से जुड़ी हुई रेलवे की सेवाओं को हासिए पर कर दिया गया है।
कोरबा जिले और संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत मौजूद रेल नेटवर्क के दायरे में रहने वाली जनता को पता है कि रेलवे का अमृतकाल जरूर चल रहा है लेकिन इसमें भी कोरबा के हिस्से में बहुत कुछ नहीं है। गिनती की रेलगाडिय़ां ही वर्तमान में कोरबा से चलाई जा रही है। इस पर भी उन्हें कभी भी रद्द कर दिया जाता है। कोरबा जिले के गेवरारोड स्टेशन से संचालित होने वाली रेल सेवाओं का भी यही हाल है। कोरबा क्षेत्र में रेल सेवाओं की बेहतरी के लिए रेल संघर्ष समिति काफी समय से आंदोलित है। इसके लिए काम करने वाले रामकिशन अग्रवाल बताते हैं कि कोरबा से राउरकेला, कोरबा से बीकानेर और कोरबा से उत्तर भारत के लिए यात्री ट्रेन संचालन करने की मांग काफी पुरानी है। इसके लिए स्थानीय और दूसरे राज्यों के सांसदों व विधायकों ने रेलवे के स्तर पर पत्राचार किया है। रेल मंडल के पास प्रस्ताव भिजवाया है। उनके परीक्षण की बात रेलवे बोर्ड की ओर से कही गई लेकिन अरसा बीतने पर भी कुछ खास नहीं हुआ। समिति का कहना है कि कोरबा से वर्तमान में केवल अमृतसर, यशवंतपुर, त्रिवेंद्रम और विशाखापट्टनम जैसे शहर के लिए ही गाडिय़ां चल रही है। जबकि कुछ सीमित दूरी की गाडिय़ां हैं। जिन ट्रेनों की मांग प्रस्तावित है उनकी अपनी उपयोगिता है। लेकिन रेलवे जान-बूझकर इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल रहा है।
रेलवे का पूरा जोर कोल ट्रांसपोर्टिंग पर
आम लोग यही समझ रहे हैं कि कोरबा स्टेशन को अमृत भारत स्टेशन में शामिल कर देने से बहुत कुछ अच्छा हो सकता है लेकिन इसके पीछे का गणित समझ से परे है। लोगों को पता है कि गेवरारोड और कोरबा से हर आधे घंटे में मालगाडिय़ों की आवाजाही विभिन्न राज्यों के लिए कराई जा रही है। इस प्रक्रिया में यात्री गाडिय़ों को जबरदस्त तरीके से प्रभावित किया जा रहा है। यह सिलसिला काफी पुराना हो गया है और लोग या तो मजबूरी में सफर कर रहे हैं या फिर वे इसके अभ्यस्त हो चुके हैं। लोग यह भी मानते हैं कि अमृत भारत स्टेशन के अंतर्गत करोड़ों के खर्च से नया फुटओवर ब्रिज, प्लेटफार्म विस्तार, सौंदर्यीकरण समेत कई काम होने पर भी औचित्य तब तक साबित नहीं हो सकेगा जब तक कि नई रेलगाडिय़ां यहां से चलना शुरू न हो।
इन गाडिय़ों की निरंतरता पर चुप्पी
कोरबा से इंदौर और रींवा के लिए सीधी ट्रेन चलाए जाने संबंधी मांग को लेकर भी दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के अधिकारियों ने चुप्पी साध रखी है। नागरिक संगठनों की ओर से रेलवे से मांग की जाती रही है कि इंदौर-बिलासपुर और रींवा-बिलासपुर जैसी रेलगाड़ी का संचालन कोरबा से करना व्यवहारिक होगा। तर्क दिया गया है कि ये गाडिय़ां 12 घंटे तक बिलासपुर में अनावश्यक खड़ी रहती है। कोरबा में कोचिंग डिपो की सुविधा शुरू होने के साथ रखरखाव अब आसान हो गया है। इसलिए इन दोनों गाडिय़ों का संचालन यहां से होना चाहिए।

RO No. 13467/ 8