नई दिल्ली। लोकसभा में संविधान पर चर्चा के दौरान वायनाड से पहली बार संसद पहुंची कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने संयम, परिपक्वता, ज्वलंत मुद्दों से जुड़ाव के साथ मर्यादा की लक्ष्मण रेखा में रहते हुए प्रभावी तरीके से अपनी बात रखकर सदन में सबका ध्यान खींचा। हाई वोल्टेज सियासी गरमागरमी के दौर में भी शब्दों की मर्यादा कायम रखी।
एक लंबे अर्से बाद कांग्रेस को एक प्रखर वक्ता की कमी पूरी
मगर आमलोगों के मुद्दों, सवालों के साथ सत्ता को निरंकुश व्यवहार से जुडे़ मसलों पर कठघरे में खड़ा करने में कोई हिचक भी नहीं दिखाई। संसदीय शिष्टाचार की परिधि में रहते हुए विशुद्ध सहज हिन्दी की अपनी संवाद शैली के जरिए प्रियंका सदन में एक लंबे अर्से बाद कांग्रेस को एक प्रखर वक्ता की कमी पूरी करने की उम्मीद के रूप में नजर आयीं। संविधान की 75 वर्ष की गौरवशाली यात्रा पर चर्चा की शुरूआत करते हुए रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के कांग्रेस पर जिस तरह का धुआंधार हमला करते हुए प्रहार किया था उसके बाद मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस की ओर से कटु पलटवार की उम्मीद की जा रही थी। मगर प्रियंका ने वेदों, पुराणों, उपनिषदों के सभी धर्मों के ग्रंथों में वाद-विवाद और संवाद का उल्लेख कर बहस को देश की संस्कृति बता शुरूआत में ही सत्तापक्ष को नरम कर दिया।
सांप्रदायिक हिंसा, मणिपुर हिंसा और हाथरस दुष्कर्म पीड़िता की बात की
इसके बाद संभल की सांप्रदायिक हिंसा, मणिपुर हिंसा और हाथरस दुष्कर्म पीड़िता के मामले को नागरिकों के संवैधानिक हक पर प्रहार का मामला भी इस अंदाज में उठाया कि सत्तापक्ष इसका प्रतिवाद नहीं कर सका। बाहर यह एक सामान्य चर्चा रही कि लंबे अर्से बाद गांधी परिवार में एक ऐसे वक्ता की झलक दिखने लगी है जो धीरे धीरे इंदिरा की छवि को फिर से पा सकता है।