नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की प्रस्तावना में जोड़े गए ‘समाजवाद’ और ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्दों को हटाने की मांग वाली याचिकाएं सोमवार को खारिज कर दी। कोर्ट ने 42वें संविधान संशोधन के जरिये प्रस्तावना में जोड़े गए इन दोनों शब्दों को 44 वर्ष बाद चुनौती दिए जाने पर सवाल उठाते हुए कहा कि इतने समय बाद चुनौती देने का कोई न्यायोचित आधार नजर नहीं आता। याचिका पर विस्तार से विचार करने की जरूरत नहीं लगती। शीर्ष अदालत ने ऐतिहासिक फैसले में कहा कि संविधान एक जीवंत दस्तावेज है। संसद को संविधान संशोधन की निर्विवाद शक्ति प्राप्त है और यह शक्ति प्रस्तावना में संशोधन तक विस्तारित है। प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने इसके साथ ही भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी तथा अन्य की तीन याचिकाएं खारिज कर दीं।
तीनों ही याचिकाओं में आपातकाल के दौरान 1976 में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार द्वारा 42वें संशोधन के जरिये संविधान की प्रस्तावना में जोड़े गए शब्द ‘समाजवाद’ और ‘पंथनिरपेक्ष’ को चुनौती दी गई थी। इनमें कहा गया था कि संविधान में शुरू में ये दोनों शब्द नहीं थे, इन्हें बाद में जोड़ा गया और वह भी पूर्व तिथि यानी संविधान अंगीकर करने की तिथि 26 नवंबर, 1949 से प्रभावी किया गया। संशोधन को पूर्व तिथि से लागू करना गलत था।