नईदिल्ली, १३ दिसम्बर ।
विडंबना है कि दुनिया की आबादी के लिहाज से वाहनों की संख्या में एक प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाला भारत, सडक़ दुर्घटनाओं से मौत के वैश्विक आंकड़ों में 10 प्रतिशत से ज्यादा की हिस्सेदारी रखता है। इन मौतों का प्रमुख कारण घायलों को समय से इलाज नहीं मिल पाना है। इसे देखते हुए मोदी सरकार ने मोटर वाहन अधिनियम 1988 की धारा 162 में वर्ष 2019 में संशोधन करते हुए सडक़ दुर्घटनाओं के कैशलेस इलाज को कानूनी अनिवार्यता दे दी। पायलट प्रोजेक्ट के तहत यह योजना अभी छह राज्यों-केंद्र शासित प्रदेशों में चल रही है। केंद्रीय सडक़ परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने गुरुवार को लोकसभा में बताया कि पायलट प्रोजेक्ट के निष्कर्षों को व्यावहारिकता की कसौटी पर कसते हुए अब इस सुविधा को देशभर में लागू करने की तैयारी है।उन्होंने बताया कि कैशलेस इलाज की योजना अभी असम, हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड, चंडीगढ़ और पुडुचेरी में लागू है। आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत ट्रामा और पालीट्रामा के लिए स्वास्थ्य लाभ पैकेज दिया जा रहा है। मोटर वाहनों के उपयोग से होने वाली सडक़ दुर्घटना के पीडि़तों को प्रति दुर्घटना अधिकतम 1.5 लाख रुपये तक कैशलेस उपचार दिए जाने की व्यवस्था है।पीडि़तों को यह राहत दुर्घटना की तिथि से अधिकतम सात दिन में ही दी जा रही है। मंत्री ने कहा कि दुर्भाग्य की बात है कि हमारे देश में रोड एक्सीडेंट बढ़ रहे हैं। नीति आयोग और एम्स की रिपोर्ट के हिसाब से 30 प्रतिशत मृत्यु जो हुई हैं, वह दुर्घटना के तुरंत बाद स्वास्थ्य सेवाएं न मिलने के कारण हुईं। इसीलिए यह कैशलेस योजना लाई गई थी। अभी तक इससे 2100 लोगों की जान बची है और अधिकतम 1,25,000 रुपये ही इलाज के लिए देने की जरूरत पड़ी है। जल्द ही यह योजना उत्तर प्रदेश में शुरू हो रही है और योजना के सकारात्मक परिणाम के आधार पर तीन माह में पूरे देश में लागू करने का विचार है।गडकरी ने कहा कि जब वह अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में विदेश जाते हैं और सडक़ हादसों पर चर्चा होती है तो हाथों से अपना मुंह छिपाने का प्रयास करते हैं। लेन की अनुशासनहीनता को सडक़ हादसों का प्रमुख कारण बताते हुए उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि जब उन्होंने कार्यभार संभाला था, तब हादसों को पचास प्रतिशत घटाने का लक्ष्य तय किया था। आज हादसे घटने की बात तो भूल जाइए, यह कहने में भी कोई संकोच नहीं है कि सडक़ हादसों की संख्या बढ़ गई है।गडकरी ने यातायात नियमों की अनदेखी पर चिंता जताते हुए अपना उदाहरण भी दिया कि उनकी कार का भी दो बार मुंबई में चालान हो चुका है। यातायात नियमों के प्रति मानव व्यवहार और समाज के बदलाव पर जोर देते हुए मंत्री ने बताया कि उनका स्वयं का परिवार भी सडक़ हादसे का शिकार हुआ था, तब उन्हें लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा था।उन्होंने कहा कि तेज रफ्तार बड़ी समस्या नहीं है, क्योंकि दुनिया में लोग तेज गाड़ी ही चला रहे हैं। भारत में बड़ी समस्या लेन का अनुशासन न होने से है। सडक़ पर ट्रकों की पार्किंग और ट्रकों द्वारा लेन का पालन न किए जाने से भी बहुत हादसे होते हैं। युवाओं को यातायात अनुशासन के बारे में शिक्षित करने की जरूरत है। बच्चों को भी यातायात नियमों के महत्व के बारे में संवेदनशील बनाने की जरूरत है।उन्होंने कहा, भारत में मानव व्यवहार को बदलना होगा, समाज को बदलना होगा और कानून का सम्मान करना होगा। सडक़ों पर यातायात कानून का उल्लंघन जांचने के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं।
सभी संसद सदस्यों को चाहिए कि वे अपने संसदीय क्षेत्र में यातायात जागरूकता से जुड़े कार्यक्रम आयोजित करें। देश में प्रतिवर्ष सडक़ दुर्घटनाओं में 1.78 लाख लोगों की मौत होती है। इनमें 60 प्रतिशत यानी सर्वाधिक संख्या 18-34 वर्ष आयुवर्ग के युवाओं की होती है। गडकरी ने इस बात पर दुख जताया कि लोगों में कानून का डर नहीं है और तमाम लोग बिना हेलमेट के दोपहिया वाहन चलाने के साथ लाल बत्ती पार करते हैं। सडक़ दुर्घटनाओं में मरने वालों की संख्या के मामले में उत्तर प्रदेश राज्यों में, जबकि दिल्ली शहरों में सबसे ऊपर है। उत्तर प्रदेश में एक वर्ष में 23,000 मौतें दर्ज की गईं, जो कुल मौतों का 13.7 प्रतिशत है।
इसके बाद तमिलनाडु का नंबर आता है, जहां 18,000 यानी 10.6 प्रतिशत लोगों की जान सडक़ हादसों में गई। महाराष्ट्र में यह आंकड़े 15,000 या कुल मौतों का नौ प्रतिशत हैं और इसके बाद मध्य प्रदेश का नंबर आता है, जहां 13,000 मौतें (आठ प्रतिशत) दर्ज की गईं। शहरों की बात करें तो 1,400 मौतों के साथ दिल्ली नंबर एक पर है। इसके बाद बेंगलुरु (915) और तीसरे नंबर पर 850 मौतों के साथ जयपुर आता है। लोकसभा ने गुरुवार को आपदा प्रबंधन (संशोधन) विधेयक, 2024 को मंजूरी दे दी।
इसका उद्देश्य राष्ट्रीय और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकारों की कार्य क्षमता बढ़ाना, उनकी भूमिका को लेकर स्पष्टता लाना तथा उनके बीच अधिक समन्वय सुनिश्चित करना है।विधेयक पर हुई चर्चा का गृह राज्य मंत्री नित्यांनद राय ने जवाब दिया। इसके बाद सदन ने इसे ध्वनिमत से मंजूरी दी। विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए राय ने कहा कि विधेयक के जरिये केंद्र, प्रदेश और जिला स्तर के संस्थानों की भूमिका निर्धारित की जाएगी। उनका कहना था, जब तक भूमिका निर्धारित नहीं होगी और एकरूपता नहीं होगी तब तक प्रभावी रूप से आपदा प्रबंधन नहीं हो सकता।मंत्री ने कहा कि आज बदली हुई परिस्थितियों में और इसके क्रियान्वयन से जुड़ी समस्याओं को ध्यान में रखते हुए यह संशोधन विधेयक लाया गया है। राय के अनुसार, शहरी आपदा प्रबंधन के सृजन का प्रविधान करने के साथ वर्तमान आपदा प्रबंधन संस्थाओं को अधिक प्रभावी बनाया जा रहा है तथा विभिन्न एजेंसियों के बीच समन्वय पर जोर दिया गया है।राय ने तृणमूल कांग्रेस के सांसद सौगत राय की एक टिप्पणी का हवाला देते हुए हिरोशिमा और नागासाकी में परमाणु बम हमले का उल्लेख किया और कहा कि कोई भी भारत को परमाणु बम की धौंस नहीं दिखा सकता। यह विधेयक दो अगस्त, 2024 को लोकसभा में पेश किया गया था।विधेयक में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकार और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकारों को राष्ट्रीय कार्यकारी समिति तथा राज्य कार्यकारी समिति के बजाय राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर आपदा प्रबंधन योजना तैयार करने का अधिकार सुनिश्चित किया गया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक्स पर पोस्ट कर कहा कि यह विधेयक आपदा प्रबंधन के लिए प्रतिक्रियाशील दृष्टिकोण के बजाय सक्रिय ²ष्टिकोण को प्राथमिकता देकर प्रत्येक नागरिक की सुरक्षा का मार्ग प्रशस्त करता है।