उठ रहे सवाल, क्या ऐसा करने से सपना होगा साकार
कोरबा। दूसरे चरण में जिले में विधानसभा चुनाव संपन्न होना है। सरकारी अमला इस काम में व्यस्त हो गया है। ऐसे में सरकारी जमीनों पर बड़ा संकट पैदा हो गया है। कोरबा नगर में एसईसीएल के हेलीपैड के पीछे ग्रीन बेल्ट में एक दर्जन से ज्यादा बोर्ड लगा दिए गए हैं जिनमें विभिन्न समाज का नाम लिखा हुआ है। माना जा रहा है कि यहां की जमीन को हथियाने के लिए इस हथकंडे पर काम किया गया है। ऐसा करने से क्या जमीन की अधिकारिकता प्राप्त हो सकती है , इसका जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है। लेकिन यह भी कहा जा रहा है कि क्या बोर्ड लगाने मात्र से संबंधित लोग जमीन को हड़पने में सफल हो सकेंगे।
कोरबा क्षेत्र में सरकारी से लेकर सार्वजनिक उपक्रमों की जमीन पर अतिक्रमण करना नया मुद्दा नहीं है। बीते कई वर्षों में काफी जमीन बट्टे खाते में जा चुकी है और वोट बैंक के चक्कर में कुछ हुआ भी नहीं। समय-समय पर कुछ मामलों में स्थानीय प्रशासन के साथ-साथ नगर निगम के द्वारा कार्रवाई की गई और अतिक्रमण को हटाया गया। इसमें साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड के अंतर्गत आने वाले ग्रीन बेल्ट का क्षेत्र भी शामिल है जहां पर बड़े स्तर पर किए गए कब्जे को बेदखल करने का काम पिछले वर्ष में किया गया। लेकिन समय गुजरने के साथ अब एक नया खेल यहां शुरू हो गया है। इसके पीछे कुल मिलाकर यहां की जमीन पर अपना अधिकार जताने की रणनीति नजर आती है। विधानसभा चुनाव संपन्न करने के लिए प्रशासन और पुलिस के अधिकारी से लेकर कर्मचारी कुछ ज्यादा ही व्यस्त हो गए हैं। ऐसे में विभिन्न क्षेत्रों में खाली पड़ी जमीनों पर नया संकट आं खड़ा हो गया है। नया मामला ग्रीन बेल्ट से जुड़ा हुआ है जहां पर विभिन्न समाज के बोर्ड अचानक नजर आ रहे हैं। कहीं पर जमीन में बोर्ड लगाए गए हैं तो कहीं-कहीं दो पेड़ के बीच में ऐसे बोर्ड को टांग दिया गया है। इस तरह के तौर तरीको के माध्यम से शायद यह जताने की कोशिश संबंधित लोगों के द्वारा की गई है कि जहां पर बोर्ड लगा है उसके आसपास की जमीन हमारी हो गई है। बताया जाता है कि चुनाव की आचार संहिता लगने के ठीक बाद इस तरह का काम इस इलाके में हुआ है। इसे करने के पीछे किस तरह से योजना बनी यह पता नहीं चल सका है लेकिन अब यह मामला इस इलाके के साथ-साथ आसपास के क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है। सूत्रों ने बताया कि इस बारे में अलग-अलग स्तर पर जानकारी भेजी जा रहे हैं ताकि समय पर उचित कार्रवाई करने के साथ इस इलाके को अतिक्रमण की भेंट चढऩे से बचाया जा सके। इस पूरे मामले में गौर करने वाली बात यह है कि ग्रैंड न्यूज़ के द्वारा संबंधित लोगों से बातचीत करने का प्रयास किया गया लेकिन किसी ने भी खुद को बोलने के लिए तैयार नहीं किया। किसी को डर सता रहा है तो कोई बुराई मोल लेने की मानसिकता में नहीं है। सबसे बड़ा सवाल यही है कि अगर आम जनता के हितों की परवाह करते हुए सरकारी तंत्र प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए खर्च करने के साथ पौधारोपण करता है और उन्हें संरक्षित भी करता है तो फिर लंबी प्रतीक्षा के बाद पेड़ और वृक्ष बनने वाली संपदा को आखिर किसी के स्वार्थ के लिए कैसे बलि चढ़ा दिया जाए। आशा की जानी चाहिए कि प्रशासन में बैठे अधिकारी इस दिशा में जरूर ध्यान देंगे और पर्यावरण से जुड़े हुए विषय को गंभीरता से लेने के साथ ग्रीन बेल्ट को बचाने के लिए जरूरी कार्रवाई करेंगे।