
कोरबा। जिले में पार्टी की सर्वे में भाजपा के लिए सर्वाधिक सुरक्षित व संभावनाओं वाले कटघोरा विधान सभा सीट पर क्या इस बार कमल खिलेगा। अथवा नही इस लेकर कयासों का दौर शुरू हो गया है हालाकि भाजपा ने अभी तक यहां प्रत्याशी की घोषणा नही की है लेकिन कहा जा रहा है कि यदि योग्य उम्मीदवार का चयन कर पार्टी यहां प्रत्याशी मैदान में उतारती है। तो रिजल्र्ट पाजिटिव आ सकता है। क्योंकि कांग्रेस के वर्तमान विधायक ने जीत पर कटघारो को जिला बनाने का चुनावी वायदा किया था। जिसे वें पूरा नही कर पाए है।
फलस्वरूप विपरित हवा बह रही है। कटघोरा सीट पर सबसे ज्यादा समय तक कांग्रेस का दबदबा रहा है. सीट पर सबसे ज्यादा 6 बार चुनाव जीतने का रिकॉर्ड बोधराम कंवर के नाम है. 6 बार में से एक बार वह निर्दलीय (1972) चुने गए. लेकिन इसके बाद वह कांग्रेस में शामिल हो गए और हर बार चुनाव जीतते रहे.
कटघोरा सीट पर कांग्रेस का दबदबा, क्या बीजेपी को यहां पर मिलेगी जीत छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले की अपनी खास राजनीतिक पहचान है. जिले की कटघोरा विधानसभा सीट भले ही सामान्य सीट है, लेकिन यहां पर आदिवासी उम्मीदवारों का खासा दबदबा है और हार-जीत पर काफी असर डालते हैं. कटघोरा विधानसभा सीट पर अभी कांग्रेस का कब्जा है. कटघोरा सीट पर सबसे ज्यादा समय तक कांग्रेस का दबदबा रहा है. सीट पर सबसे ज्यादा 6 बार चुनाव जीतने का रिकॉर्ड बोधराम कंवर के नाम है. 6 बार में से एक बार वह निर्दलीय (1972) चुने गए. लेकिन इसके बाद वह कांग्रेस में शामिल हो गए और हर बार चुनाव जीतते रहे.2018 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो कटघोरा सीट पर 10 उम्मीदवारों के बीच मुकाबला रहा. हालांकि यहां त्रिकोणीय मुकाबला दिखा. भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) के बीच कड़ा मुकाबला रहा. कांग्रेस के पुरुषोत्तम कंवर को चुनाव में 59,227 वोट मिले तो भारतीय जनता पार्टी के लखनलाल देवांगन को 47,716 वोट मिले.जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के उम्मीदवार के गोविंद सिंह राजपूत के खाते में 30,509 वोट आए. कांग्रेस के पुरुषोत्तम कंवर ने 11,511 मतों के अंतर से यह मुकाबला जीत लिया. तब के चुनाव में कटघोरा सीट पर कुल 1,97,527 वोटर्स थे जिसमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 1,01,055 थी तो महिला मतदाताओं की संख्या 96,467 थी. इसमें कुल 1,51,128 (78.0त्न) वोट पड़े. हृह्रञ्ज्र के पक्ष में 2,867 (1.5त्न) वोट डाले गए.
कटघोरा विधानसभा सीट पर कुल 2,05,961 वोटर्स हैं. इसमें पुरुष वोटर्स की संख्या 1,04,805 है जबकि महिला वोटर्स की संख्या 1,01,146 है. इनके अलावा 10 ट्रांसजेंडर भी वोटर्स हैं.कटघोरा सीट के चुनावी इतिहास पर गौर करें तो 1990 के बाद से इस सीट पर ज्यादातर समय कांग्रेस का ही दबदबा रहा है. कांग्रेस ने 4 बार तो बीजेपी ने 3 बार जीत हासिल की है. छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद 2003 में जब यहां पर पहली बार चुनाव हुए तो कांग्रेस के बोधराम कंवर ही विजयी हुए. 5 साल बाद 2008 के चुनाव में भी बोधराम कंवर चुनाव जीतने में कामयाब रहे थे 2013 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने लखनलाल देवांगन के दम पर यहां फिर से जीत हासिल की. उन्होंने 6 बार के विधायक बोधराम को हराया. कांग्रेस इस सीट पर आदिवासी कंवर समाज के लोगों को ही टिकट देती रही है. लेकिन 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने बोधराम कंवर की जगह उनके बेटे पुरुषोत्तम कंवर को टिकट दिया और वह चुनाव जीतने में कामयाब रहे. लखनलाल देवांगन दूसरे स्थान पर रहे.कटघोरा सीट का बड़ा हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों से घिरा हुआ है. यहां का करीब 60 प्रतिशत इलाका कोयला खदान से जुड़ा हुआ है. एसईसीएल की ओर से कोयला खदान और बिजली संयंत्रों के लिए अधिग्रहित की गई जमीन पर पुनर्वास नीति से करीब 25 हजार किसान ज्यादा खुश नहीं हैं. कई लोगों को उचित मुआवजा तक नहीं मिल सका कांग्रेस ने वादा किया था कि वह सत्ता में आने के कटघोरा को जिला बनाएगी लेकिन उसकी ओर से वादा पूरा नहीं किया गया. जबकि बीजेपी ने भी सत्ता में रहने के दौरान वादा किया था लेकिन पूरा नहीं किया गया. वैसे तो सीट सामान्य वर्ग के लिए लेकिन आदिवासी वोटर निर्णायक की भूमिका में रहता है. यहां पर करीब 70 प्रतिशत सामान्य और ओबीसी वर्ग के वोटर्स हैं तो करीब 30 प्रतिशत वोटर्स आदिवासी समाज के लोग है जिनकी चुनाव निर्णय में महत्व पूर्व भूमिका रहती है। कांग्रेस की ओर यहां वर्तमान विधायक पुरूषोत्तम कंवर को टिकिट मिलने की संभावना है। वहीं भाजपा की ओर से विकास महतो,ज्योतिनंद दुबे,पवन गर्ग, देवेन्द्र पाण्डेय, मनोज शर्मा, एवं प्रेम पटेल को प्रबल दावे दार माना जा रहा है। यहां से टिकिट के लिए पूर्व कलेक्टर आर.पी.एस त्यागी भी लगे हुए है।