
नईदिल्ली, 0८ अक्टूबर । पूर्वी लद्दाख में चीन से जारी सैन्य टकराव के बाद भारतीय सेना को चीनी भाषा मंदारिन के विशेषज्ञ उपलब्ध कराने में टेरिटोरियल आर्मी (प्रादेशिक सेना) अहम भूमिका निभा रही है। एलएसी पर गतिरोध को लेकर होने वाली भारत-चीन के बीच सैन्य वार्ताओं में सेना इन चीनी भाषा के विशेषज्ञों की सहायता ले रही है।भारतीय सेना की असैन्य रणनीतिक जरूरतों को पूरा करने में सहायक भूमिका निभा रही टेरिटोरियल आर्मी ने अब सेना की साइबर सुरक्षा चुनौतियों के लिए पहला रक्षा कवच बनने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है। इसके लिए साइबर सुरक्षा के कुछ विशेषज्ञों को टेरिटोरियल आर्मी में भर्ती की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। जबकि भारतीय रेलवे में सात दशक से तैनात टेरिटोरियल आर्मी के छह में से पांच विशेष बटालियनों को समाप्त कर दिया गया है। सूत्रों ने कहा कि टेरिटोरियल आर्मी एलएसी पर चीन से जारी टकराव के मद्देनजर अग्रिम मोर्चे पर सेना को लॉजिस्टिक सहायता मुहैया कराने से लेकर हिंसा प्रभावित मणिपुर में आवश्यक जन सेवाओं को संचालित करने में खास भूमिका निभा रही है। एलएसी पर लॉजिस्टिक सहायता पहुंचाने के अलावा प्रादेशिक सेना ने विशेष रूप से राष्ट्रीय स्तर पर गहन चयन प्रक्रिया और साक्षात्कार के बाद मंदारिन भाषा के पांच अनुवादकों की नियुक्ति कर सेना को दिया है।सेना ने इसी अगस्त महीने में इन पांचों को एलएसी के अग्रिम मोर्चे पर तैनात किया है, जिनका चीन के साथ सैन्य वार्ताओं में उपयोग किया जाएगा। सूत्रों ने कहा कि सैन्य प्रभुत्व बनाए रखने के लिए साइबर सुरक्षा बेहद अहम हो गया है, क्योंकि साइबर खतरों का आकार कई गुना बढ़ गया है। सेना साइबर रणनीति और युद्ध कौशल के क्षेत्र में अपना काम कर रही है, मगर टेरिटोरियल आर्मी भी इसमें सहायक भूमिका निभाएगी और इसके मद्देनजर पायलट प्रोजेक्ट के तहत पांच साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों को नियुक्त किया जा रहा है।रेलवे में तैनात टेरिटोरियल आर्मी के छह में से पांच बटालियन खत्म करने के संदर्भ में सूत्र ने कहा कि रेलवे बोर्ड का तर्क है कि रेलवे में अब हड़ताल जैसी कोई घटना या आपात स्थिति नहीं होती। ऐसे में रेलवे टेरिटोरियल बटालियन का औचित्य नहीं रह गया है। चूंकि इन बटालियनों का पूरा खर्च रेलवे वहन करता है और अब उसे जरूरत नहीं इसीलिए 30 सितंबर को रेलवे के पांच प्रादेशिक बटालियन खत्म कर दिए गए।सूत्रों के अनुसार सेना की प्रशासनिक, लॉजिस्टिक, सप्लाई और परिवहन जैसी गैर रणनीतिक यूनिटों के संचालन का जिम्मा टेरिटोरियल आर्मी को सौंपे जाने पर भी विचार किया जा रहा है। इससे सेना की असैन्य जरूरतों के खर्च के साथ पेंशन के बोझ को कम किया जा सकेगा। मालूम हो कि टेरिटोरियल आर्मी में नियुक्ति नियमित नहीं होती और जरूरत के अनुरूप इसमें भर्ती होती है। हालांकि, इसमें शामिल होने वालों के लिए साल में कम से कम दो महीने सेवाएं देना अनिवार्य है।