उद्यमियों की आंखें पथराई इंतजार करते हुए
-तरूण मिश्रा-
कोरबा। न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि देश के अलावा दूसरे देशों में एल्यूमिनियम उत्पादन के लिए विशेष पहचान बनाने वाले भारत एल्यूमिनियम कंपनी (बालको) के संयंत्र के कारण प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से हजारों हाथों को काम मिला और उनके जीवन स्तर में अपेक्षा से कहीं ज्यादा सुधार हुआ। कई कारणों से मांग की जाती रही कि कोरबा में एल्यूमिनियम पार्क की स्थापना जरूरी है। हैरानी इस बात को लेकर है कि 23 साल बीतने पर भी इस दिशा में प्रस्ताव और चर्चा से आगे कुछ काम नहीं हो सका।
इस बात को लेकर विभिन्न क्षेत्रों में नाराजगी का होना स्वाभाविक है। लोग कहीं खुलकर बोलते हैं तो कहीं दबी जुबां में। कारोबारियों की बड़ी संख्या कोरबा जिले में मौजूद हैं, जिनमें स्थानीय भी हैं और देश के भिन्न-भिन्न राज्यों के भी। इनमें से कुछ संख्या को कुछ वर्ष हुए हैं जबकि बहुत सारे उद्यमी एक दशक से भी ज्यादा समय से व्यवसायिक आधार भूमि, तकनीकी और विपणन के साथ-साथ दुनिया भर की चुनौतियों को समझने में सफल रहे हैं। उद्यमियों के हित संवर्धन को लेकर कई संगठन चल रहे हैं तो कई लोग कंस्लटेंट के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। अलग-अलग स्तर पर कोरबा में एल्यूमिनियम पार्क की स्थापना कराए जाने के लिए दो दशक से भी पहले मांग उठी जो अभी भी जारी है। इस दौरान छत्तीसगढ़ में तीन सरकारें बन गईं जिन्होंने इस मुद्दे को सैद्धांतिक सहमति तो दी लेकिन इसे जमीन पर उतारने में रूचि नहीं ली। एल्यूमिनियम पार्क की स्थापना कराए जाने के लिए उद्यमियों के अपने तर्क रहे हैं। उनका कहना है कि जिस हिसाब से स्थानीय एल्यूमिनियम उद्योग की क्षमता लगातार बढ़ रही है, उससे भविष्य को लेकर नई संभावनाओं का उदय होना बेहद स्वाभाविक है। रक्षा, अभियांत्रिकी के साथ-साथ दूसरे क्षेत्रों में एल्यूमिनियम से संबंधित कई श्रेणी के उत्पाद की मांग जिस हिसाब से बढ़ी है और उसकी निरंतरता जारी है, ऐसे में एल्यूमिनियम पार्क के लिए कोरबा में काम होना चाहिए। नाराजगी इस बात को लेकर है कि आसानी से जमीन, श्रम, संसाधन और हर स्तर पर सहयोग की उपलब्धता के बावजूद किसी भी सरकार ने इस तरफ न तो विचार किया और न ही क्रियान्वयन कराया। हर चुनाव में यह मुद्दा बनता रहा है। अबकी बार फिर से इसकी चर्चा हो रही है। लोग कहते हैं कि भले ही आम जनता इसे हासिए पर करे लेकिन जिस वर्ग का वास्ता इससे है, वह तो वोटिंग के दौरान सोचेगा ही।
कई तरह के लाभ की उम्मीद
कारोबार सेक्टर से जुड़े हुए जानकार बताते हैं कि देश में जहां कहीं भी श्रेणी विशेष से संबंधित संयंत्र संचालित हो रहे हैं, वहां पर उसके लिए सहायक सामाग्री तैयार करने वाले छोटे उद्योग लगने के बहुत सारे फायदे हुए हैं। दरअसल इनके लिए कच्चे माल की आपूर्ति के साथ-साथ लागत और सरकारी सब्सिडी का दायरा भिन्न-भिन्न हुआ करता है। इस स्थिति में मुख्य उद्योग की चुनौतियां न्यून हो जाती है और उन्हें सहयोगी के रूप में बड़े हाथ प्राप्त होते हैं। जाहिर तौर पर जब ऐसे काम होते हैं तो रोजगार के नियोजन में आसानी होती है जिससे बेकारी की समस्या पर लगाम लगाना भी संभव होता है।