वाराणसी, १८ अगस्त । धान की फसल काटने के विवाद में 29 साल पूर्व हुई अनुसूचित जाति के लालबहादुर की हत्या मामले में विशेष न्यायाधीश (एससी-एसटी एक्ट) रश्मि नंदा की अदालत ने 14 अभियुक्तों कमलेश मौर्य, परमानंद मौर्य, दशरथ मौर्य, यशवंत मौर्य, रामप्यारे मौर्य, बंशीनाथ मौर्य, महेंद्र मौर्य, मिश्रीलाल, यशवंत सिंह, रामभजन मौर्य, गुरु नारायण मौर्य, बलवंत मौर्य, विमलेश मौर्य व नामवर मौर्य को उम्र कैद और 30-30 हजार रुपये सभी के लिए अर्थदंड की सजा सुनाई। अर्थदंड न देने पर अभियुक्तों को चार माह अतिरिक्त कारावास की सजा भुगतनी होगी। अदालत में अभियोजन पक्ष की ओर से विशेष लोक अभियोजक (एससी-एसटी एक्ट) सत्येंद्र कुमार सिन्हा ने पक्ष रखा। यह मामला चंदौली जिले के बबुरी थानांतर्गत डहिया गांव का है। अभियोजन पक्ष के अनुसार डहिया गांव निवासी रामनिहोर ने 19 दिसंबर 1994 को इस आशय की प्राथमिकी दर्ज कराई थी कि कि 10 वर्षीय बालक अशोक सुबह आठ बजे समान लेने गांव में ही राजेश जायसवाल के दुकान पर गया था।वहां मौजूद अभियुक्त कमलेश ने कहा कि तुम हमारे खेत का धान चुराकर अपने दरवाजे पर रखे हो, इतना बोलते हुए उसे मारने लगा। किशोर ने इसकी शिकायत घर लौट अपने पिता से की। इस पर वह और उसके साथ चार लोग मारपीट की शिकायत करने जब कमलेश के खेत पर गये तो वहां मौजूद लालजी व विमलेश उसे गाली देने लगे। तब तक रामकुमार, कमलेश, दशरथ और जसवंत हाथ में कट्टा लेकर ललकारते हुए उसे दौड़ा लिए।भाग कर सभी अपने दरवाजे पहुंच थे, कि उसी समय रामकुमार ने बंदूक से फायर किया जो लाल बहादुर को लगी और मौके पर ही उसकी मौत हो गई। उसके बाद कमलेश,दशरथ व जसवंत ने कट्टा से लालजी को भी गोली मारकर जख्मी कर दिया। इस दौरान जब हमलोग लाश के पास जाना चाहे तो अन्य आरोपित हाथों में लाठी-डंडा,गंडासा लेकर ललकारते हुए दौड़ा लिए। पुलिस ने कार्यवाही करते हुए शव को कब्जे में लिया।सुनवाई के दौरान तीन आरोपितों रामकुमार सिंह,सुदामा एवं लालजी की मृत्यु हो गई। एक आरोपित दीना के अनुपस्थित रहने पर उसकी पत्रावली अलग कर दी गई। अदालत में अभियोजन पक्ष की ओर से छह गवाह परीक्षित हुए। वहीं इसी प्रकरण से जुड़े मारपीट के दर्ज क्रास मुकदमे में अदालत ने दस अभियुक्तों को भी दोषी करार देते हुए उन्हें दंडित किया। अदालत ने अभियुक्त लालजी,बचाऊ,राजकुमार, रामआसरे,घनश्याम,विद्यासागर,बचनू राम,शिवशंकर,दूधनाथ एवं श्यामलाल को तीन-तीन साल के कारावास एवं व प्रत्येक को सात-सात हजार रुपया अर्थदंड की सजा सुनाई।