
शिमला, 01 अगस्त [एजेंसी]।
प्रदेश सरकार ने एनजीओ फेडरेशन के पदाधिकारियों के तबादले के चार दशक पुराने प्रावधान को बदल दिया है। अब विभागीय अधिकारियों को फेडरेशन के पदाधिकारी के तबादले से पहले मुख्य सचिव की संस्तुति नहीं लेनी होगी। प्रदेश में एनजीओ फेडरेशन के कमजोर होते वजूद व कर्मचारियों पर ढीली पड़ती पकड़ के मद्देनजर सरकार ने बदलाव किया है। प्रदेश में एनजीओ फेडरेशन कर्मचारियों का ताकतवर संगठन रहा है। कर्मचारियों की फेडरेशन पर पकड़ को देखते हुए 1981 में सरकार ने पदाधिकारियों के तबादलों को लेकर मुख्य सचिव से संस्तुति लेना अनिवार्य किया था। इसकी वजह पदाधिकारियों व फेडरेशन की कर्मचारियों में मजबूत पकड़ मानी जा रही है, मगर करीब ढाई दशक में राज्य में कर्मचारी फेडरेशन लगातार कमजोर पड़ती गई। न सिर्फ महासंघ कई गुटों में बंट गया, बल्कि इससे अलग हुए एक धड़े ने तो कर्मचारी परिसंघ का भी गठन किया था। प्रदेश में बीते दो दशकों में महासंघ के धड़ों में मान्यता को लेकर विवाद चलता रहा। पूर्व जयराम व इससे पहले स्वयं वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में भी महासंघ की धड़ेबाजी पूरी तरह से उजागर हुई। कर्मचारी महासंघ की संयुक्त समन्वय समिति (जेसीसी) के निर्णय लागू ही नहीं हो सके। जाहिर है कि सरकारों को आभास हो गया था कि फेडरेशन की कर्मचारियों में पकड़ कमजोर हो गई है।वर्तमान में तो एनपीईएस कर्मचारियों के साथ आउटसोर्स का भी अलग संगठन है। कार्मिक विभाग ने मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना की ओर से पत्र जारी किया है जिसमें कहा गया है कि पुराने प्रविधान को हटा दिया है। मान्यता प्राप्त महासंघ के राज्य पदाधिकारी का यदि तबादला होता है तो इसमें मुख्य सचिव की संस्तुति नहीं लेनी होगी। सरल तरीके से दूसरे कर्मचारियों की तरह ही उनका भी तबादला हो सकता है। नए आदेश जारी करते हुए सभी विभागाध्यक्षों को इसकी अनुपालना सुनिश्चित करने को कहा गया है। कार्मिक विभाग के उप सचिव बलबीर सिंह ने यह आदेश मुख्य सचिव की ओर से जारी किए हैं।तबादलों को लेकर अंतिम दिन था प्रदेश सरकार ने तबादलों के लिए महीने के आखिरी चार कार्यदिवस रखे हैं। इसके तहत यह व्यवस्था सोमवार को बंद हो गई। जुलाई के चार कार्यदिवस का सोमवार को आखिरी दिन था जिसमें तबादले किए गए। अब तबादलों पर लगभग एक महीने तक प्रतिबंध रहेगा और सरकार कोई तबादला नहीं करेगी।