
पटना, १९ दिसम्बर । साड़ी फैक्ट्री से लेकर अंगूर के खेतों तक में काम के लिए बिहार के बच्चे दलालों के निशाने पर हैं। ये उनके परिवार की गरीबी का लाभ उठाकर उन्हें मजदूर बना रहे हैं। वह भी दूसरे प्रदेशों में ले जाकर, जहां से न उनका परिवार से संपर्क हो पाता है, न ही वे वहां अपनी पीड़ा किसी को बता सकते हैं। अभिभावकों को चार- पांच हजार तक की रकम देकर बच्चों को ले जाते हैं, इस वादे के साथ कि प्रतिमाह रुपये भेजे जाएंगे। कुछ रुपये दिए भी जाते हैं, इसके बाद बंद। चूंकि परिवार इतना गरीब होता है कि कहीं शिकायत कर पाने की स्थिति में भी नहीं होता। ये दलाल विशेष रूप से उन क्षेत्रों में घूम रहे होते हैं, जहां गरीबी चरम पर है। जो प्रशासन की दृष्टि में आ जाते हैं, उन्हें तत्काल बचा तो लिया जाता है, पर इसकी गारंटी नहीं कि वे फिर नहीं ले जाए जाएंगे। केवल 27 दिनों में ऐसे 41 बच्चे दलालों से छुड़ाए गए हैं, जिन्हें मजदूरी के लिए बाहर ले जाया जा रहा था। ये दानापुर, राजेंद्र नगर, पाटलिपुत्र और पटना जंक्शन से मुक्त कराए गए।अन्य जगहों से भी बच्चों को ले जाया जा रहा है, कुछ पकड़ में आ जाते हैं, कुछ को वे ले जाने में सफल हो जाते हैं। इसका कोई रिकार्ड नहीं है कि प्रदेश के कितने बच्चे बाहर मजदूरी कर रहे हैं, पर गांवों से जो कहानियां निकलकर आ रही हैं, वह साफ दर्शा रहे कि बच्चों के सौदागर जगह-जगह घूम रहे हैं।हाल के दिनों में बरामद किए गए बच्चों में अधिसंख्य सीमांचल और मिथिला क्षेत्र के हैं। इनमें सारण के भी बच्चे शामिल हैं। मगध क्षेत्र से बच्चों को जयपुर की चूड़ी फैक्ट्रियों में काम करने के लिए पहले से ले जाया जा रहा है। इसे तो दलालों ने हब बना दिया है। बचपन बचाओ आंदोलन के राज्य समन्वयक अरिजीत अधिकारी कहते हैं कि जब उनलोगों को सूचना मिलती है तो बिहार पुलिस और आरपीएफ की मदद से बच्चों को बचाया जाता है। संस्था इस क्षेत्र में कार्य कर रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में इसको लेकर जागरूकता का काफी अभाव है। दलाल इन सबका लाभ उठा रहे हैं। 13 दिसंबर को बचपन बचाओ आंदोलन संस्था और दानापुर आरपीएफ की सहायता से एक ट्रेन से आठ बच्चों को उतारा गया।