
कोरबा। जिन इलाकों में महुआ की पैदावार होती है वहां हाथी और भालुओं के द्वारा उत्पात मचाने के मामले आम हैं। न केवल इनकी गंध वन्य प्राणियों को भाती है बल्कि वे इस चक्कर में हमलावर भी हो जाते हैं। कोरबा और कटघोरा वनमंडल में महुआ की पर्याप्त उपलब्धता है और ऐसे में इस प्रकार के मामले सामने आने स्वाभाविक होते हैं। वन सेवा के अधिकारी संजय त्रिपाठी ने बताया कि सूर्योदय से पहले सामान्य रूप से संबंधित क्षेत्रों में ग्रामीण क्षेत्रों के लोग महुआ संग्रहण करने के लिए निकलते हैं। इन्हें शायद इस बात की पूरी जानकारी नहीं है कि यही समय खासतौर पर भालुओं के भोजन का होता है और वे इसकी तलाश में जंगल में निकलते हैं। दूसरे आहार को छोड़ दिया जाए तो कम से कम महुआ उनकी पहली पसंद हुआ करता है और वे इसे लेकर कोई समझौता करने के मूड में नहीं होते। विभिन्न क्षेत्रों में हुए अध्ययन के आधार पर यह बात सामने आई है कि अपने आहार को कोई और प्राप्त करे यह बात भालू पसंद नहीं करते। उन्हें ऐसा लगता है कि कोई उनके हक पर डाका डाल रहा है। यहां तक कि महुआ के पेड़ वाले रास्ते पर भी भोजन के समय कोई व्यक्ति दिख जाए तो उस पर भी हमले की घटनाएं हो जाती है। हमले के मामले में भालू को सबसे क्रूर स्वाभाव की श्रेणी में रखा गया है।



























