
नई दिल्ली। देश में गुटका, पान मसाला, जर्दा या खैनी जैसे धुआं रहित तंबाकू उत्पाद स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद हानिकारक और इनसे होने वाली बीमारियों का इलाज बहुत महंगा साबित हो रहा है। भारत के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर प्रिवेंशन एंड रिसर्च नोएडा, मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज, नई दिल्ली और सेंटर फॉर हेल्थ इनोवेशन एंड पॉलिसी (सीएचआईपी) फाउंडेशन से जुड़े शोधकर्ताओं के सहयोग से किए अध्ययन में यह बात सामने आई है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, यदि इनसे जुड़ी नीतियों में बदलाव नहीं किया गया तो देश में इसका सेवन करने वालों के जीवन काल में स्वास्थ्य देखभाल पर करीब 1,58,705 करोड़ रुपए (1,900 करोड़ डॉलर) का खर्च आएगा। इसका सबसे ज्यादा बोझ मुंह के कैंसर के इलाज पर होने वाले खर्च के रूप में पड़ेगा। इस अध्ययन में भारत के साथ-साथ पाकिस्तान, बांग्लादेश और यूके के विभिन्न सस्थानों से जुड़े शोधकर्ताओं ने भी योगदान दिया है। अध्ययन के नतीजे ऑक्सफोर्ड एकेडमिक के निकोटीन एंड टोबैको रिसर्च जर्नल में प्रकाशित हुए हैं। शोधकर्ता प्रोफेसर सुभाष पोखरेल कहते हैं कि कई जानी मानी हस्तियां भी भ्रामक विज्ञापनों के माध्यम से इनका प्रचार करती हैं। सिगरेट बीड़ी की तरह नाबालिगों को तंबाकू बेचने के कानून उतने कड़े नहीं हैं, जितने होने चाहिए। कानूनी प्रतिबंधों के बावजूद स्कूलों के पास भी यह आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।

























