
किसानों की परेशानी बढ़ी
जांजगीर चांपा। कृषि प्रधान अविभाजित जांजगीर चांपा जिले में तकरीबन डाई लाख हेक्टेयर से अधिक रकबे में धान की फसल लहलहा रही है। समय के साथ इन फसलों में बीमारियों का प्रकोप भी बढऩे लगा है। वहीं इन बिमारियों से फसलों को बचाने की सलाह देने वाला जिम्मेदार कृषि विभाग का अफसर ग्रामीण इलाको में नजर नहीं आ रहा है। ऐसी स्थिति कीटनाशक दवा बेचने वाले व्यापारी जिस दवाई को बढिय़ा बता रहे है। किसान उसका ही प्रयोग करने मजबूर है।
गौरतलब है कि जांजगीर चांपा जिला व नवगठित जिला सक्ती में धान की मुख्य फसल ली जाती है। वर्तमान में खरीफ सीजन में तकरीबन ढाई लाख हेक्टेयर रकबे में धान की फसल ली जा रही है। बोआई और निदाई, के पश्चात खाद डालने का काम हो चुका है। धान के पौधे पूरी तरह से तैयार हो गए है। कुछ दिनों में गर्भोट (बाली आने की स्थिति) के लायक फसलें तैयार हो रही है। ऐसे में बरसात आने के साथ ही फसलों में बीमारियों का प्रकोप भी देखने को मिल रहा है। अधिकांश जगहों पर झुलसा, तनाच्छेदक, माहो की
शिकायतें भी मिल रही है। इसके आलावा अन्य प्रकार की बीमारियों का कहर भी फसलों में देखा जा रहा है। इस दौरान कृषि प्रधान जांजगीर चांपा व नवगठित जिला सक्ती के अधिकांश गांवों में कृषि विभाग का मैदानी अमला नजर नहीं आ रहा है. जबकि शासन के निर्देशानुसार गांवों में पदस्थ ग्रामीण कृषि विकास अधिकारी (ग्राम सेवक) को प्रत्येक गांवों में जाकर किसानों से चर्चा करनी है और इस तरह की बीमारी में वे किस प्रकार के दवा का छिडक़ाव कितनी मात्रा में करेंगे, इन सबकी जानकारी देनी होती है, लेकिन अधिकांश गांवों में कृषि विभाग का मैदानी अमला नजर नहीं आ रहा है। गांव देहात को दूर जिला मुख्यालय से लगे ग्राम खोखरा, मेंहदा में मैं भी किसी विभाग के अधिकारी नजर नहीं आते।
कृषि विभाग के मैदानी अमले के दर्शन नहीं हो रहे है। इधर नवागढ़ ब्लाक के तुलसी, बर्रा, भठली, बरगांव आदि क्षेत्रों में फसलों में बीमारियों का प्रकोप फैला हुआ है और मैदानी अमले के दर्शन नहीं हो रहे है। इस तरह की स्थिति में कसान पूरी तरह से कीटनाशक बेचने वाले व्यापारियों के भरोसे दवा का छिडक़ाव कर रहे है। किसानों के मुताबिक क्षेत्र के कीटनाशक विक्रेता फसलों की बीमारियों को देखकर जो दवाईया देते है, उसी का छिडक़ाव किया जाता है। कई बार उनके द्वारा दी गई दवाई असर नहीं करती। जिसके कारण दूसरी दवाईयां लेनी पड़ती है। ऐसी स्थिति में कई बार फसलों को भारी नुकसान हुआ है।