कोरबा । डीएमएफ घोटाले में जेल में बंद आदिवासी विभाग कोरबा की पूर्व सहा.आयुक्त माया वारियर की मुश्किले बढ़ती जा रही है। आज ईडी की विशेष अदालत ने जहां निलंबित आईएएस रानू साहू और माया वारियर को जहां 5 नवंबर तक न्यायिक रिमांड पर जेल भेज दिया हैं। वहीं कोरबा कलेक्टर अजीत वसंत ने माया वारियर के कार्यकाल में केंद्र सरकार के 275{1} मद में हुए करोड़ों रूपये के घोटाले पर जांच बैठा दी है। कलेक्टर अजीत वसंत ने साफ कहा है कि जांच में जो भी कर्मचारी-अधिकारी दोषी पाये जायेंगे उनके खिलाफ पुलिस में FIR दर्ज करायी जायेगी।
गौरतलब है कि केंद्र सरकार द्वारा संविधान के अनुच्छेद 275 {1} मद अंतर्गत कोरबा जिला के आदिवासी विकास विभाग को 6 करोड़ 56 लाख रूपये का फंड जारी किया गया था। इस फंड से जिले के आदिवासी छात्रावासों में पढ़ने वाले बच्चों के बेहतर मूलभूत सुविधा के साथ ही जर्जर छात्रावासों के रेनोवेशन पर पैसे खर्च करने थे। लेकिन तत्कालीन सहायक आयुक्त माया वारियर पर केंद्र सरकार के इस फंड पर भ्रष्टाचार की सेंध लगाते हुए करीब 3 करोड़ रूपये का बंदरबांट कर जमकर धांधली करने का गंभीर आरोप लग रहा है।
आरोप है कि माया वारियर के तबादले के बाद इस मद से कराये गये सारे कामों की फाइल जिनमें चेक पंजी, निविदा रजिस्टर, कार्यादेश की कापी के साथ ही सारे दस्तावेज विभाग से गायब कर दिये गये। ताकि कागज में हुए करोड़ों रूपये के कार्यो का खुलासा न हो सके। आपको बता दे इस मामले की शिकायत मिलने के बाद पूर्व कलेक्टर संजीव कुमार झा ने टीम गठित कर जांच के आदेश दिये थे। लेकिन जांच टीम में शामिल अधिकारियों का सुस्त रवैय्ये के कारण जांच डेढ़ साल बाद भी आज तक पूरा नही हो सका। डीएमएफ घोटाले में माया वारियर की गिरफ्तारी के बाद इस मामले ने एक बार फिर तूल पकड़ लिया है। जिस पर कलेक्टर अजीत वसंत ने 7 सदस्यीय टीम गठित कर जांच का आदेश दिया है। कलेक्टर के इस आदेश के बाद करोड़ों के इस भ्रष्टाचार में अहम भूमिका निभाने वाले लोगों के बीच हड़कंप मचा हुआ है।
दोषी पर FIR दर्ज कराया जायेगा- कलेक्टर
कलेक्टर अजीत वसंत ने बताया कि मामला काफी गंभीर है, जिस पर जांच का आदेश दिया गया है। जांच रिपोर्ट में जो भी कर्मचारी या फिर जिला अधिकारी दोषी होगा, उसे बख्शा नही जायेगा। कलेक्टर ने साफ किया कि केंद्र सरकार के करोड़ों रूपये के फंड के दस्तावेज विभाग से गायब है। इस फर्जीवाड़े में जिस भी कर्मचारी और अधिकारी की संलिप्तता पायी जायेगी, सबसे पहले उसके खिलाफ पुलिसि में FIR दर्ज कराया जायेगा। वहीं करोड़ों रूपये के फर्जी पेमेंट भुगतान पर भी रिकव्हरी की कार्रवाई की जायेगी।
उठ रहे हैं सवाल..
बता दे की पूर्व कलेक्टर संजीव कुमार झा द्वारा जो जांच के आदेश दिए गए थे उसमें 15 दिवस जांच के लिए समय सीमा का निर्धारण किया गया था किंतु डेढ़ साल बीत जाने के बाद भी जांच पूरी नहीं हो पाई। इस बार जो जांच के आदेश दिए गए हैं उसमें समय सीमा का निर्धारण नहीं किया गया है , देखना यह है कि इस बार जांच किस रफ्तार से होती है और जांच रिपोर्ट के क्या परिणाम सामने आते है ।