
कोरिया बैकुंठपुर। हर इंसान के जीवन में छत का महत्व शब्दों में नहीं बयां किया जा सकता। जब वह छत खपरैल से पक्की बन जाए, तो यह सिर्फ सुरक्षा ही नहीं, बल्कि आत्मसम्मान, सुकून और एक नई उम्मीद का भी प्रतीक बन जाती है। कोरिया जिले के सोनहत विकासखंड के ग्राम कटगोड़ी के विजय सिंह और रामप्रसाद सिंह तथा बैकुंठपुर के खुटनपारा की श्रीमती दुर्गा बाई कश्यप की कहानी भी ऐसी ही प्रेरणादायक है। इन परिवारों ने प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत पक्के मकान मिलने के बाद अपने जीवन में एक नई रोशनी देखी है।
हमारा जीवन हमेशा संघर्ष से भरा था। बरसात में छत से पानी टपकता, गर्मियों में लू से झुलसते और ठंड में कपड़ों में दुबक कर रात काटनी पड़ती थी। जंगली जानवरों और सांप-बिच्छू का डर हर पल बना रहता था। पक्के मकान का सपना तो जैसे हमारी पहुंच से कोसों दूर था। .दुर्गा बाई ने भी खपरैल के घर में बिताए दिनों को याद करते हुए बताया, हर रात डर के साए में गुजरती थी। घर को बंदर और अन्य जानवर नुकसान पहुंचाते थे। बच्चों की सुरक्षा को लेकर हमेशा चिंता बनी रहती थी। सब कुछ बदलने की शुरुआत तब हुई जब प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत पक्के मकान की स्वीकृति मिली। विजय और रामप्रसाद ने कहा, शुरुआत में विश्वास ही नहीं हुआ कि हमें भी पक्का मकान मिलेगा। लेकिन जब निर्माण कार्य शुरू हुआ, तो हमारे सपने सच होते दिखे। दुर्गा बाई भावुक होकर कहती हैं, जब घर बनकर तैयार हुआ और हमने पहली बार परिवार के साथ उसमें कदम रखा, तो ऐसा लगा जैसे हमारा जीवन फिर से शुरू हो गया। आज हम सुकूनभरी नींद सोते हैं और भविष्य के लिए नए सपने देखते हैं। आज ये परिवार सुरक्षित और सशक्त महसूस करते हैं। पक्के मकान ने उन्हें न केवल प्रकृति की मार से बचाया, बल्कि आत्मसम्मान और समाज में एक नई पहचान भी दी। रामप्रसाद कहते हैं, पहले हम सिर्फ जी रहे थे, लेकिन अब हम खुशहाल जीवन जी रहे हैं। घर में शांति है और भविष्य के लिए हमारी उम्मीदें मजबूत हो गई हैं। दुर्गा बाई ने कहा इस घर ने हमें सुरक्षा दी, परिवार को बेहतर माहौल और हमें आत्मविश्वास।
आज हमें किसी से पीछे होने का अहसास नहीं होता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इच्छाशक्ति और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की नीतियों का असर अब जमीन पर दिख रहा है। लाखों परिवारों को पक्के मकान देने का यह कदम न केवल उन्हें सुरक्षा प्रदान कर रहा है, बल्कि उनके जीवन स्तर को नई ऊंचाई भी दे रहा है। यह कहानी सिर्फ तीन परिवारों की नहीं है, बल्कि उन लाखों परिवारों की है जो खपरैल से पक्के मकान तक का सफर तय कर रहे हैं।