बीजिंग। दुनिया को विभिन्न वस्तुएं निर्यात करने वाले चीन का ट्रेड सरप्लस लगभग एक ट्रिलियन डॉलर पहुंच गया है। अगर इस दौरान बढ़ी हुई मुद्रास्फीति को भी समायोजित कर दें तो पिछले साल चीन का ट्रेड सरप्लस पिछली शताब्दी में दुनिया के किसी भी देश के व्यापार अधिशेष से कहीं अधिक था। यहां तक की जर्मनी, जापान और अमेरिका जैसी निर्यात महाशक्तियों से भी अधिक है।दरअसल, वर्तमान में चीनी कारखाने वैश्विक मैन्यूफैक्चरिंग पर हावी हैं। कमोवेश यही स्थिति द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कई सालों तक अमेरिका की रही। मैन्यूफैक्चरिंग में चीन के एकाधिकार को देखते हुए अब विभिन्न देशों में आवाज उठने लगी है और वह वहां के सामान पर शुल्क लगाने लगे हैं।इसी तरह की कार्रवाई चीन ने भी उन देशों के खिलाफ की है। इससे दुनियाभर में ट्रेड वार की स्थिति उत्पन्न हो गई है। 2023 में चीन का ट्रेड सरप्लस 990 अरब डॉलर रहा जबकि 2022 में यह आंकड़ा 838 अरब डॉलर था। दिसंबर, 2024 में चीन के निर्यात में सालाना आधार पर 10.7 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के व्यापार शुल्क लगाने की चेतावनी से उत्पन्न अनिश्चितता के बीच चीन के कारखानों ने ऑर्डरों को पूरा करने में तेजी दिखाई है, जिससे देश के निर्यात में बढ़ोतरी दर्ज की गई। अर्थशास्त्रियों ने दिसंबर 2024 में इसमें करीब सात प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान लगाया था।इस अकेले एक महीने के दौरान ट्रेड सरप्लस सबसे अधिक 104.80 अरब डॉलर रहा। मैन्यूफैक्चरिंग वस्तुओं में ट्रेड सरप्लस चीन की अर्थव्यवस्था का 10 प्रतिशत था। कई देश मैन्यूफैक्चरिंग वस्तुओं में ट्रेड सरप्लस चाहते हैं, क्योंकि कारखाने ना केवल रोजगार पैदा करते हैं बल्कि यह देश की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण होते हैं।मैन्यूफैक्चरिंग में चीन के दबदबे का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वह कारों के आयात से आगे बढक़र जापान, दक्षिण कोरिया, मैक्सिको और जर्मनी को पीछे छोड़ते हुए दुनिया का सबसे बड़ा कार निर्यातक बन गया है।