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पटना। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने आरजेडी और कांग्रेस की टेंशन बढ़ा दी है। दरअसल, बिहार की राजनीति में भाजपा ने भी पूरी तरह से जाति को साधने का काम शुरू कर दिया। भाजपा ने सरकारी योजनाओं में पिछड़ा एवं अति पिछड़ों की भागीदारी बढ़ाने के साथ ही संगठनात्मक नेतृत्व में इस समुदाय को आगे कर संदेश देने प्रयास किया है। पार्टी ने 50 प्रतिशत से अधिक संगठनात्मक जिलों में जिलाध्यक्ष का दायित्व पिछड़ा-अतिपिछड़ा समाज के कार्यकर्ताओं को सौंप दिया है। भाजपा के 52 संगठनात्मक जिलों में से 46 जिलों में अध्यक्ष का निर्वाचन पूरा कर लिया गया है। इसमें 25 से अधिक जिलों में भाजपा ने पहली बार पिछड़ा-अतिपिछड़ा समाज के कार्यकर्ताओं को जिलाध्यक्ष बनाया है। गैर यादव पिछड़ी एवं अतिपिछड़ी जातियों पर भाजपा ने सर्वाधिक फोकस किया है। संकेत है कि विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण में भी पार्टी इसी रणनीति पर आगे बढ़ेगी। पार्टी ने सवर्णों के साथ ही पिछड़ा में वैश्य, कोईरी (कुशवाहा) के अतिरिक्त धानुक, कुर्मी के साथ एक मुश्त पचपनियां वोट बैंक को लक्ष्य बनाकर नेतृत्व उभारने का प्रयास किया है। भाजपा में संगठनात्मक चुनाव की समय सीमा समाप्त हुए एक महीने बीतने को है लेकिन प्रदेश नेतृत्व छह संगठनात्मक जिलों में जिला अध्यक्ष के नाम घोषित करने को लेकर कशमकश में है।