बैंकॉक, १४ फरवरी ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज भारत और थाईलैंड के बीच प्राचीन और गहरे सांस्कृतिक संबंधों पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच यह रिश्ता 2000 वर्षों से भी अधिक पुराना है जो शांति और सद्भाव की एशियाई परंपराओं को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाता है। उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि थाईलैंड में ‘संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है।
पीएम मोदी ने थाईलैंड की समृद्ध संस्कृति, इतिहास और विरासत की सराहना करते हुए इसे एशिया की दार्शनिक और आध्यात्मिक परंपराओं का सुंदर उदाहरण बताया। प्रधानमंत्री मोदी ने बताया कि संवाद की यह पहल 2015 में जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे के साथ चर्चा के दौरान उभरी थी। तब से इसका विभिन्न देशों तक में प्रसार हुआ है। जिससे बहस, संवाद और बेहतर समझ को बढ़ावा मिला है। उन्होंने भारत और थाईलैंड के बीच ऐतिहासिक रूप से गहरे सांस्कृतिक संबंधों को रेखांकित किया और कहा कि रामायण और थाईलैंड की रामकियेन दोनों देशों को जोड़ती हैं, जबकि भगवान बुद्ध के प्रति साझा श्रद्धा उन्हें एकजुट करती है। उन्होंने याद दिलाया कि जब भारत ने भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेष थाईलैंड भेजे थे, तो करोड़ों लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी थी। प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी बताया कि भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति और थाईलैंड की ‘एक्ट वेस्ट’ नीति एक-दूसरे की पूरक हैं, जो दोनों देशों के आपसी विकास और समृद्धि को बढ़ावा देती हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ‘एशियाई सदी’ सिर्फ आर्थिक विकास के बारे में नहीं है, बल्कि सामाजिक मूल्यों की भी इसमें अहम भूमिका है। उन्होंने कहा कि भगवान बुद्ध की शिक्षाएं दुनिया को एक शांतिपूर्ण और प्रगतिशील युग की ओर ले जा सकती हैं। उनकी बुद्धिमत्ता हमें एक मानव-केंद्रित भविष्य की ओर बढऩे की शक्ति देती है। संघर्षों के मुद्दे पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि संवाद का एक प्रमुख उद्देश्य संघर्ष से बचना है। उन्होंने बताया कि कई बार संघर्ष इस सोच से पैदा होते हैं कि सिर्फ हमारा मार्ग सही है और बाकी सभी गलत हैं। भगवान बुद्ध इस समस्या का समाधान देने में सक्षम हैं। उन्होंने यह भी कहा कि संघर्ष का एक और कारण यह होता है कि लोग दूसरों को खुद से अलग समझते हैं। मतभेद दूरी को जन्म देते हैं और यह दूरी कलह का कारण बन सकती है। उन्होंने समझाया कि हर कोई दर्द और मृत्यु से डरता है, और अगर हम दूसरों को अपने जैसा मानेंगे, तो हम हिंसा और नुकसान से बच सकते हैं।