पॉक्सो मामलों की सुनवाई के लिए पर्याप्त जज नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- वर्षों से इनके पद खाली

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि देश के ट्रायल कोर्ट में पॉक्सो कानून के अंतर्गत मामलों की सुनवाई के लिए पर्याप्त जज नहीं हैं, जो इसके खिलाफ यौन अपराधों से निपटने के लिए हर जिले में एक विशेष अदालत स्थापित करने जैसे इसके निर्देशों को लागू कर सकें।जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की पीठ 2019 के एक मामले को स्वत: संज्ञान लेकर सुनवाई कर रही थी, जिसका शीर्षक बाल दुष्कर्म की रिपोर्ट की गई घटनाओं में चिंताजनक बढ़ोतरी था। सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों के मामलों से विशेष रूप से निपटने के लिए पॉक्सो अधिनियम के तहत 100 से अधिक एफआईआर वाले हर जिले में एक केंद्रीय-वित्तपोषित न्यायालय की स्थापना करने समेत कई निर्देश पारित किए थे। जस्टिस त्रिवेदी ने कहा, जिला अदालतों में रिक्त पदों को देखते हुए कुछ निर्देश अभी भी अधूरे हैं। हमारे जिला न्यायालयों में न्यायाधीश नहीं हैं। वर्षों से पद रिक्त पड़े हुए हैं। हमें जिला न्यायपालिका में पर्याप्त न्यायाधीश नहीं मिल रहे हैं। पीठ ने कहा कि 2019 के अन्य निर्देशों का पालन किया गया है और अब 25 मार्च को इस मामले का निपटारा किया जा सकता है। वहीं, पीठ ने उस रिपोर्ट पर भी ध्यान दिया जिसमें समय पर पॉक्सो मुकदमे पूरा करने में सबसे बड़ी बाधा फोरेंसिक लैब से रिपोर्ट मिलने में देरी को बताया गया। रिपोर्ट के अनुसार 1 जनवरी से 30 जून 2019 तक देशभर में बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों की 24,212 एफआईआर दर्ज की गईं। इनमें से 11,981 मामलों की जांच अभी भी पुलिस कर रही है और 12,231 केसों में चार्जशीट फाइल कर दी गई है।

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