
नईदिल्ली, 07 जुलाई ।
बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण के तहत मतदाता सूची से लाखों नाम हटाए जाने की आशंका को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई हैं। अब सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 10 जुलाई को सुनवाई करने पर सहमति जताई है। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, गोपाल शंकरनारायणन और शादाब फरासत ने सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर याचिका दर्ज की है। इन वकीलों की ओर से दलील दी गई है कि विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया से लाखों लोगों के लोगों के नाम वोटर लिस्ट से हटाए जाने की आशंका है। इसमें महिलाओं और गरीब पृष्ठभूमि से आने वाले लोगों पर सबसे ज्यादा असर पड़ेगा। वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी, कपिल सिब्बल और अन्य ने कोर्ट में दलील दी कि अगर कोई वोटर जरूरी दस्तावेजों के साथ फॉर्म नहीं भरता, तो उसका नाम मतदाता सूची से हट सकता है, भले ही वह पिछले बीस साल से वोट डालता रहा हो।
सिंघवी ने कहा, 8 करोड़ मतदाता हैं और 4 करोड़ को गणना करनी है। यह नामुमकिन काम है। सिब्बल ने कहा, यह इतना आसान नहीं। वहीं, वकील संकरनारायणन ने बताया कि आधार कार्ड और वोटर कार्ड जैसे दस्तावेज भी स्वीकार नहीं किए जा रहे। सिंघवी ने कोर्ट को बताया कि 25 जुलाई तक दस्तावेज जमा करने की समय सीमा इतनी सख्त है कि अगर कोई चूक गया, तो उसका नाम सूची से बाहर हो जाएगा।
उन्होंने कहा, यह समय सीमा इतनी कम है कि लाखों लोग प्रभावित हो सकते हैं। हालांकि, जस्टिस धूलिया ने कहा कि चूंकि अभी चुनाव की अधिसूचना जारी नहीं हुई है, इसलिए इस समय सीमा का कोई खास महत्व नहीं है। वकीलों का कहना है कि यह प्रक्रिया न सिर्फ जटिल है, बल्कि आम वोटरों के लिए परेशानी का सबब बन सकती है। खासकर उन लोगों के लिए जो सालों से वोट डाल रहे हैं, लेकिन अब नए नियमों के तहत दस्तावेज जमा करने में असमर्थ हैं। इस मामले में चार याचिकाओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। आरजेडी के मनोज झा, कार्यकर्ता योगेंद्र यादव, महुआ मोइत्रा और अन्य संगठनों ने चुनाव आयोग के इस कदम को गलत ठहराया है। उनका कहना है कि यह प्रक्रिया निष्पक्षता और पारदर्शिता के खिलाफ है। बिहार की सियासत में इस मुद्दे ने पहले ही हलचल मचा दी है।