
उदयपुर, १८ जुलाई ।
राजस्थान के बांसवाड़ा स्थित मानगढ़ धाम में एक बार फिर भील प्रदेश की मांग गूंज उठी। आयोजित भील आदिवासी सम्मेलन (भील प्रदेश संदेश यात्रा) में राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र के आदिवासी प्रतिनिधि पहुंचे और एक स्वर में भील प्रदेश के गठन की मांग दोहराई। सम्मेलन का आयोजन भील प्रदेश मुक्ति मोर्चा और आदिवासी परिवार संस्था की ओर से किया गया। संस्था के संस्थापक मास्टर भंवरलाल परमार ने कहा कि आदिवासी भारत के मूल मालिक हैं। 70 साल में भी हमारी मांगें पूरी नहीं हुईं। अब आदिवासी डरना छोड़ चुके हैं और भील प्रदेश के लिए संघर्ष तेज होगा। उन्होंने कहा कि राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के 45 जिलों को मिलाकर भील प्रदेश बनना चाहिए। परमार ने बताया कि कई आदिवासी क्षेत्रों में सरकारी सुविधाएं नहीं पहुंच रही हैं। गुजरात के खानपुर क्षेत्र में आदिवासियों को अब एसटी प्रमाण पत्र नहीं मिल रहा, जबकि 2004-2006 तक ये जारी किए जाते थे। परमार ने कहा कि इतिहास गवाह है कि भील राजा रहे हैं। डूंगरपुर में 1282 में डूंगर भील राजा थे, जबकि बांसवाड़ा में 16वीं सदी में बांसिया भील शासन करते थे। सलूंबर में 12वीं सदी में सोनारा भील राजा थे। हमारे पूर्वज राजा-महाराजा और महिलाएं रानियां थीं। आज उनके वंशज फुटपाथ पर जीवन बिता रहे हैं। उन्होंने बताया कि सरकारों ने कभी आदिवासियों से संवाद करने की पहल नहीं की। संविधान की पांचवीं अनुसूची आदिवासियों के सम्मान और अधिकारों की बात करती है, लेकिन अब तक इसे नजरअंदाज किया गया।उन्होंने सुझाव दिया कि हर जिले का कलेक्टर, एसपी, एसडीएम और अन्य अधिकारी महीने में एक बार आदिवासी संगठनों से संवाद करें और उनकी मांगें जानें।
सम्मेलन में यह भी कहा गया कि यदि आदिवासियों को उनके क्षेत्रों में पानी, रोजगार और मूलभूत सुविधाएं दी जाती तो उन्हें शहरों की ओर पलायन नहीं करना पड़ता।आदिवासी संगठनों ने स्पष्ट किया कि जब तक भील प्रदेश की मांग पूरी नहीं होती, तब तक आंदोलन जारी रहेगा। उनका कहना है कि ये आंदोलन आदिवासियों की अस्मिता, अधिकार और इतिहास की पुनर्प्राप्ति के लिए है। बांसवाड़ा-डूंगरपुर से बीएपी सांसद राजकुमार रोत ने 15 जुलाई को सोशल मीडिया पर भील प्रदेश का नक्शा जारी कर लोगों से सम्मेलन में शामिल होने की अपील की थी। इस पर भाजपा नेता राजेंद्र राठौड़ ने प्रतिक्रिया देते हुए इसे प्रदेशद्रोह करार दिया और इसे एक राजनीतिक स्टंट बताया।
जवाब में सांसद रोत ने कहा कि उन्हें राठौड़ से ऐसी टिप्पणी की उम्मीद नहीं थी। भील प्रदेश की मांग 1913 के मानगढ़ नरसंहार के बाद उठी थी, जब ब्रिटिश सेना ने गोविंद गुरु के नेतृत्व में सैकड़ों भीलों की हत्या की थी। यह घटना ‘आदिवासी जलियांवाला’ के रूप में जानी जाती है।