कोरबा। साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड कुसमुंडा प्रबंधन के सामने इस समय सबसे मुश्किल पहेली यह बनी हुई है कि आखिर तकनीकी और मैनुअल सिस्टम पर जमकर खर्च करने के बावजूद आखिर ऐसी कौन से चेहरे हैं जो कंपनी को ही चपत लगाने में लगे हुए हैं। 2 दिन पहले 84 टन कोयला की चोरी पकड़े जाने पर कई प्रकार के सवाल खड़े हो गए हैं। कहा जा रहा है कि मामला ऊपर तक पहुंच गया है और वहां से जवाब देने को कहा गया है।
इस मामले में जांच पड़ताल के बाद चार ट्रक पकड़ लिए गए। वे ब्रिज पर जमीन की फिर से तौल कराई गई तो लाखों रुपए कीमत का 84 टन कोयला अतिरिक्त पाया गया। जबकि संबंधित गाडिय़ों के लिए जो डिमांड ऑर्डर प्रस्तुत किया गया था उसमें कोयला की मात्रा कम थी।
साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड के स्थानीय प्रबंधन की ओर से दावा किया जा रहा है कि संबंधित गाडिय़ों की ओवरलोडिंग को रोड सेल विभाग ने पकड़ा। इसके बाद आगे की कार्रवाई हुई।
लेकिन इस पूरे प्रकरण में एक बात तो साफ है कि जब तक अंदरूनी स्तर पर सेटिंग नहीं हो सकती इस प्रकार के गड़बड़ कार्य हो ही नहीं सकते। सबसे अहम सवाल यह भी उठ रहा है कि अगर कोयला खदानों में छोटे लोग इस प्रकार के कामकाज कर रहे हैं तो इसकी पूरी संभावना है कि बड़े अधिकारियों का संरक्षण उन्हें मिला हुआ होगा। इसलिए अब कोयला चोरी की इस पहेली को सुलझाने के लिए अफसर को माथा चलाना पड़ रहा है।
कोयला चोरी कोई नई बात नहीं
वैसे भी यह बात जग जाहिर है कि कोरबा जिले में स्थित साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड की माइंस में कोयला चोरी का सिलसिला काफी समय से चल रहा है। कई वर्ष पहले ऑर्गेनाइज्ड क्राईम के तौर पर कोयला चोरी के साथ-साथ खदानों से स्क्रैप और डीजल की चोरी भी बड़े पैमाने पर हुई। दावे किए जाते रहेगी ऐसे कार्यों के लिए नेताओं के संरक्षण में काम का ठेका भी दिया गया। ऐसी स्थिति में माइंस एरिया में सुरक्षा के काम से लगी हुई एजेंसियों और उनके कर्मियों के हाथ बन्धकर रह गए। भाजपा सरकार आने के बाद कानून व्यवस्था की स्थिति को ध्यान में रखते हुए काफी सख्ती की गई और इसके नतीजे सामने आए। काफी समय तक कोल माइंस में चोरी चकारी जैसे मामले लगभग कम हो गए लेकिन अब फिर से उनकी वापसी ने हर किसी को परेशान किया है।