नई दिल्ली। अमेरिका के 25 प्रतिशत शुल्क की भरपाई सरकार निर्यातकों को वित्तीय सहायता देकर कर सकती है। इसे लेकर वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय में विचार-विमर्श शुरू हो गया है। निर्यातकों से बातचीत करके यह आकलन किया जा रहा है कि अमेरिकी टैरिफ से कौन-कौन से सेक्टर मुख्य रूप से प्रभावित होंगे और उन्हें कितनी वित्तीय सहायता देकर अमेरिका के बाजार में मुकाबले के लायक रखा जा सकता है। सरकार को यह वित्तीय सहायता लंबे समय तक नहीं देनी होगी, क्योंकि सितंबर-अक्टूबर में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौता (बीटीए) के पहले चरण को लेकर समझौता होने की उम्मीद है और फिर गत बुधवार को घोषित 25 प्रतिशत के शुल्क का कोई मायने नहीं रह जाएगा। 25 प्रतिशत शुल्क से मुख्य रूप से जेम्स व ज्वेलरी, टेक्सटाइल, लेदर आइटम, इंजीनियरिंग गुड्स, मशीनरी, मेडिकल उपकरण जैसी वस्तुओं का निर्यात प्रभावित होगा। मेडिकल उपकरण के निर्यात में अमेरिका के बाजार में भारत को ब्रिटेन और यूरोपीय यूनियन के देश टक्कर देते हैं। दूसरी तरफ अभी निर्यातक को यह भी पता नहीं लग पा रहा है कि ट्रंप प्रशासन 25 प्रतिशत के अलावा भारत पर जुर्माना कितना लगाएगा। ट्रंप सरकार की तरफ से लिखित अधिसूचना जारी करने के बाद ही इसका पता चलेगा कि किन-किन वस्तुओं को 25 प्रतिशत शुल्क की परिधि में रखा गया है और जुर्माने की राशि क्या होगी। फियो के पूर्व प्रेसिडेंट शरद कुमार सराफ को उम्मीद है कि ट्रंप अगले दिन इस फैसले को पलटते हुए इस शुल्क को लागू करने की तारीख बढ़ा दे। फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट आर्गेनाइजेशंस के महानिदेशक और सीईओ अजय सहाय ने कहा, जुर्माने को लेकर कुछ भी स्पष्ट नहीं है। इसलिए अभी हर प्रकार के निर्यात ऑर्डर होल्ड पर हैं। अमेरिकी खरीदारों ने इस प्रकार की स्थिति को भांपते हुए अपना स्टॉक पहले ही बना लिया है। यही वजह रही कि मई और जून में भारत से रिकॉर्ड मोबाइल फोन निर्यात किए गए। अपैरल एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के चेयरमैन सुधीर सेखरी ने कहा कि बीटीए के पहले चरण का समझौता होने तक अपैरल का निर्यात जरूर प्रभावित होगा। वियतनाम और बांग्लादेश से हमारा मुकाबला अमेरिका के बाजार में है। बांग्लादेश पर भारत से अधिक 35 प्रतिशत का शुल्क ट्रंप ने लगाया है। लेकिन अभी भारत के जुर्माने को स्पष्ट नहीं किया गया है। गारमेंट का 33 प्रतिशत निर्यात अमेरिका के बाजार में किया जाता है और पिछले कुछ सालों से यह हिस्सेदारी बढ़ती जा रही है। ट्रंप भारत से अमेरिका जाने वाली दवा और स्मार्टफोन को 25 प्रतिशत के शुल्क से बाहर रख सकते हैं। अमेरिका में इस्तेमाल होने वाली 40 प्रतिशत जेनेरिक दवा की आपूर्ति भारत करता है और इन दवा पर 25 प्रतिशत का शुल्क लगाने पर यह काफी महंगी हो जाएंगी। फार्मा निर्यातक दिनेश दुआ ने बताया कि जेनेरिक दवा का तुरंत उत्पादन करना कोई आसान काम नहीं है। दवा की फैक्ट्री लगाने और सप्लाई लाइन विकसित करने में पांच-छह साल का समय लग जाता है। इसलिए भारतीय जेनेरिक दवा को शुल्क से बाहर रखा गया है। सूत्रों का कहना है कि स्मार्टफोन पर 25 प्रतिशत शुल्क लगाने पर अमेरिका में एपल के आईफोन काफी महंगे हो जाएंगे। इसलिए स्मार्टफोन पर भी 25 प्रतिशत का शुल्क लगने की उम्मीद कम है।
भारत ने पिछले वित्त वर्ष में अमेरिका में 10 अरब डॉलर की दवा तो 14 अरब डॉलर के स्मार्टफोन का निर्यात किया था।भारतीय निर्यात पर अमेरिका का 25 प्रतिशत शुल्क अगर प्रभावी हो जाता है तो मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में विदेशी निवेश प्रभावित हो जाएगा। अभी खिलौना, इलेक्ट्रॉनिक्स, गैर लेदर फुटवियर सेक्टर से जुड़ी कई विदेशी कंपनियां भारत में मैन्यूफैक्चरिंग के लिए निवेश करने का पूरा मन बना चुकी हैं। इन कंपनियों को लग रहा था कि अमेरिका के बाजार में भारत को बढ़त रहेगी।खिलौने की कई अमेरिकी कंपनियां भारतीय खिलौना कंपनियों से इस दिशा में बातचीत कर रही थीं। ताकि वे भारत में उत्पादन कर अमेरिका व अन्य देशों में यहां से निर्यात कर सकें। मैन्युफैक्चरिंग करने वाली कोई भी विदेशी कंपनी सिर्फ भारत में खपत के लिए निर्माण नहीं करना चाहेंगी। निर्यात की संभावना दिखने पर ही भारत में ये कंपनियां निवेश करेंगी।
अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा आयातक देश है, इसलिए कंपनियां भारत में निवेश के लिए आकर्षित हो रही थी।