
उत्तरकाशी। धराली की आपदा ने विज्ञानियों का ध्यान एक बार फिर उत्तरकाशी की भौगोलिक संवेदनशीलता की तरफ खींचा है। यह ऐसी संवेदनशीलता है, जिस कारण आपदाग्रस्त क्षेत्र धराली तक राहत एवं बचाव अभियान में तेजी लाने में बाधा खड़ी हो रही है। यह बाधा है गंगोत्री राजमार्ग पर मनेरी से लेकर धराली के बीच तक के 15 बड़े भूस्खलन जोन।
इन हिस्सों पर सड़क बार-बार धंस रही है और पहाड़ी से भी निरंतर मलबा आ रहा है। भूस्खलन की इस कहानी की वजह सिर्फ वर्तमान मानसून सीजन में अतिवृष्टि ही नहीं है, बल्कि इसके पीछे के बड़े भौगोलिक कारण भी हैं।
प्रति वर्ष 10 से 12 एमएम की दर से खिसक रहा
वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान का अध्ययन बताता है कि यहां का बड़ा क्षेत्र सिंकिंग जोन (खिसकने वाला क्षेत्र) में शामिल है। वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के निदेशक डा विनीत गहलोत के अनुसार भटवाड़ी क्षेत्र में लगाए गए जीपीएस स्टेशन के आंकड़े बताते हैं कि बड़ा भूभाग नदी की दिशा में या ढाल की दिशा में प्रति वर्ष 10 से 12 एमएम की दर से खिसक रहा है।
ऐसा क्यों हो रहा है, इसके पीछे के अलग-अलग कारण हैं। बड़ा कारण यह है कि संबंधित क्षेत्र के पहाड़ भीतर से इतने कमजोर हैं कि वह भूकंपीय हलचल के कारण अपना ही बोझ नहीं झेल पा रहे हैं। क्योंकि इनकी क्षमता कमजोर है। इसी कारण पहाड़ के नीचे नदी का तेज बहाव इसके आधार को तेजी से खोखला कर रहा है। असमान्य भूगर्भीय हलचल के कारण यहां के पहाड़ ऊपर भी उठ रहे हैं। वाडिया के निदेशक डा गहलोत के अनुसार इस पूरे क्षेत्र में यदि पेड़ों का तेजी से कटान किया जाता है तो भूस्खलन की दर और तेज हो जाएगी। भूधंसाव वाले क्षेत्रों में अनियोजित निर्माण पर भी अंकुश लगाए जाने की आवश्यकता है।