
कोरबा . कोरबा जिले का कटघोरा वन मंडल का समृद्ध जंगल हाथियों को बेहद पसंद आ रहा है. कुछ समय पहले तक कटघोरा वन मंडल के इलाकों में हाथी प्रवास करते थे और पड़ोसी राज्यों से आकर वापस लौट जाते थे, लेकिन अब यही हाथियों के लिए एक तरह का स्थाई निवास बन गया है. लेमरू हाथी रिजर्व और हसदेव अरण्य क्षेत्र में आने वाले घने और बड़े जंगल हाथियों को भा रहे हैं. पड़ोसी राज्यों में जंगल का सिमटता दायरा भी कटघोरा वनमंडल में हाथियों के मौजूदगी की एक प्रमुख कारण है. वर्तमान में कटघोरा वनमंडल के 45 का झुंड एक साथ विचरण करते देखा गया ये हाथी ऐतमागर और आसपास के इलाकों में विचरण कर रहे हैं। बीती रात यह दल बाझीबन गांव पहुंचा और करीब दो दर्जन से अधिक किसानों की खड़ी फसलों को रौंद दिया। हाथियों का झुंड देख और उनकी चिंघाड़ सुन कर ग्रामीण भारी दहशत में है।
बता दे की यहां इतनी अधिक तादाद में हाथी पहले कभी नहीं रहे. इन्हें संभालने के साथ ही हाथी मानव द्वंद रोकना भी अब वन विभाग लिए एक बड़ी चुनौती है.
हाथियों की आवाजाही
कटघोरा वनमंडल के पसान, कोरबी और केंदई रेंज में हाथियों की आवाजाहि बनी हुई हैं। दर असल यहां घने जंगल हैं. जहां हाथियों को अधिक मात्रा में खाना और पानी मिल जाता है. इसके कारण हाथी यहां स्थाई तौर पर निवास कर रहे हैं. इन क्षेत्रों के ग्रामीणों को भी लगातार सतर्क रहने की हिदायत वन मंडल द्वारा दी जा रही हैं। लोगों को जंगल के आसपास जाने से भी मना किया जा रहा है ।और ऐसी कोई भी परिस्थिति से बचने की हिदायत दी जाती है, जिससे कि हाथी मानव द्वंद की गुंजाइश हो.
हाथियों के लोकेशन पर नजर
बांझी में किसानों की फसल नुकसान करने की सूचना के बाद से वन विभाग की टीम लगातार हाथियों की लोकेशन पर नजर रख रही है और मॉनिटरिंग की जा रही है। साथ ही, ग्रामीणों को चेतावनी दी जा रही है कि वे हाथियों के नजदीक न जाएं,
–कुमार निशांत, डीएफओ, कटघोरा के अनुसार
वन विभाग के डीएफओ कुमार निशांत ने बताया कि हाथियों द्वारा नुकसान पहुंचाई गई फसलों का सर्वे किया जा रहा है, ताकि प्रभावित किसानों को मुआवजा दिलाया जा सके। उन्होंने ग्रामीणों से अपील की है कि वे सतर्क रहें और हाथियों के विचरण क्षेत्र में न जाएं।
करंट से हुई हाथी की मौत, तो जनहानि भी जारी:
हाथियों से बचने के लिए कई बार ग्रामीण शॉर्टकट अपनाते हैं. वह अपने खेत में करंट लगा देते हैं, जिससे हाथियों की मौत हुई है. कटघोरा वनमंडल में दो से तीन मामले ऐसे आए हैं. जब करंट लगने से हाथी की मौत हुई है. एक हाथी की मौत तब हो गई, जब बिजली विभाग का हाई टेंशन तार काफी नीचे झूल रहा था. इसके संपर्क में आने से हाथी की मौत हुई थी. जबकि फसल और जनहानि के मामले भी सामने आए हैं. वनांचल में निवास करने वाले ग्रामीण वनोपज पर आश्रित रहते हैं. वह वनों की ओर जाते हैं और हाथी से उनका सामना होता है. तब जनहानि भी होती है. हालांकि वन विभाग का कहना है कि जानहानी और किसी भी तरह का नुकसान होने पर वह तत्काल मुआवजा प्रकरण तैयार करते हैं.
1930 के बाद हाथी साल 1986 में छत्तीसगढ़ आए
वन विभाग के लिए हाथी प्रबंधन का काम करने वाले एलीफेंट एक्सपर्ट प्रभात दुबे का कहना है, “छत्तीसगढ़ के लिए हाथी अभी नया है. इतिहास में 1930 तक उत्तर छत्तीसगढ़ में हाथियों का उल्लेख मिलता है, लेकिन इसके बाद हाथी यहां से चले गए थे. इसके बाद साल 1986 में हाथी आए और साल 2000 के बाद से छत्तीसगढ़ में हाथियों की लगातार मौजूदगी बनी हुई है. पूरे छत्तीसगढ़ में लगभग 250 से 300 के बीच हाथियों की संख्या है. हाथी एक बार में एक ही बच्चे को जन्म देते हैं. दूसरे बच्चे का जन्म 5 साल बाद ही होता है, इसलिए इनकी संख्या बहुत तेजी से नहीं बढ़ती. हाथियों की संख्या फिलहाल छत्तीसगढ़ में स्थिर बनी हुई है.”