
नई दिल्ली 15 अक्टूबर। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संयुक्त राष्ट्र सैन्य योगदान वाले 32 देशों (यूएनटीसीसी) के प्रमुखों के सम्मेलन में मंगलवार को बगैर किसी देश का नाम लिए कहा कि कुछ देश खुले तौर पर अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं, जबकि बहुत से ऐसे हैं जो अगली सदी में अपना वर्चस्व जमाने के लिए नए नियम गढ़ रहे हैं।उन्होंने कहा कि भारत पुरानी पड़ चुकी अंतरराष्ट्रीय संरचनाओं में सुधार की वकालत करते हुए अंतरराष्ट्रीय नियम-आधारित व्यवस्था को कायम रखने में मजबूती से खड़ा है। उन्होंने कहा कि हम आज की चुनौतियों का सामना पुराने बहुपक्षीय ढांचों से नहीं कर सकते। व्यापक सुधारों के बिना संयुक्त राष्ट्र विश्वास के संकट का सामना कर रहा है।राजनाथ सिंह ने कहा कि आज की परस्पर जुड़ी दुनिया के लिए हमें एक सुधार वाले बहुपक्षवाद की आवश्यकता है। एक ऐसी व्यवस्था जो वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करे, सभी हितधारकों को अधिकार दे, समकालीन चुनौतियों का समाधान करे और मानव कल्याण पर ध्यान केंद्रित करे।उन्होंने संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षक मिशन में भारत के योगदान का भी उल्लेख किया।
उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के झंडे तले 180 भारतीय शांतिरक्षकों ने बलिदान दिया है।आइएएनएस के अनुसार, रक्षा मंत्री ने कहा, ”भारत, ऐतिहासिक रूप से संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में सबसे बड़ा योगदान देने वाला देश है, और हमारे पास मित्र देशों के शांति सैनिकों को प्रशिक्षण देने और अंतर-संचालन क्षमता विकसित करने के लिए जरूरी योग्यताएं हैं, ताकि मिशन की सफलता के लिए आपसी समझ बनाई जा सके।”सेना प्रमुख सम्मेलन में सेना प्रमुख जनरल उपेन्द्र द्विवेदी ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में सैनिक भेजने वाले देशों को एक ऐसा ढांचा तैयार करना चाहिए जो मजबूत और प्रतिक्रियात्मक हो। इसके साथ ही उन्होंने अभियानों में उन्नत प्रौद्योगिकियों को भी शामिल करने पर जोर दिया।उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों को तमाम तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इसमें आतंकियों के बढ़ते प्रभाव, हाइब्रिड युद्ध और भ्रामक सूचनाओं का संकट शामिल है। उन्होंने कहा कि दुनियाभर में 56 सक्रिय संघर्ष जारी हैं और लगभग 90 देशों की भागीदारी है।एएनआइ के मुताबिक, शांति अभियानों के अंडर सेक्रेटरी जनरल जीन-पियरे लैक्रोइक्स ने जोर देकर कहा कि भविष्य के लिए तैयार रहने के लिए, हमें आज ही तैयार रहना होगा। आगे आने वाली चुनौतियां वास्तविक हैं और अगर हम एकजुट रहें, अपने कार्यों में व्यावहारिक रहें और शांति के प्रति अपनी प्रतिबद्धता में अडिग रहें, तो उनसे आसानी से निपटा जा सकता है।