
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट भले ही एसआइआर को चुनाव आयोग का अधिकार बता चुका है, लेकिन विपक्षी गठबंधन आइएनडीआइए बिहार के बाद 12 राज्यों में मतदाता सूची के विशेष सघन पुनरीक्षण यानि एसआइआर कराने के चुनाव आयोग के एलान को परोक्ष रूप से एनआरसी (नेशनल रजिस्टर आफ सिटिजन्स) का अभियान मान रहा है।
संसद के शीत सत्र में एसआइआर के खिलाफ मोर्चाबंदी
इसके मद्देनजर ही विपक्षी पार्टियां संसद के शीत सत्र में एसआइआर के खिलाफ एकजुट होकर मोर्चाबंदी करने की कसरत में जुट गई हैं। कांग्रेस, सपा, तृणमूल कांग्रेस, द्रमुक से लेकर वामपंथी दलों के रणनीतिकार दर्जनभर राज्यों में एसआइआर के एलान के बाद संयुक्त रणनीति को लेकर आपसी चर्चा कर रहे हैं। विपक्षी दलों का साफ मानना है कि सीधे तौर पर एनआरसी लाने की बजाय केंद्र सरकार चुनाव आयोग के जरिये एसआइआर को नागरिकता प्रमाणित करने का जरिया बनाना चाहती है। इसलिए मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार विपक्ष की ओर से महाभियोग प्रस्ताव लाने की सियासी फायरिंग लाइन पर हैं।
एनआरसी कराने का सरकार का गेम प्लान स्पष्ट
आइएनडीआइए के एक वरिष्ठ रणनीतिकार ने शुक्रवार को अनौपचारिक बातचीत के दौरान कहा कि एसआइआर के बहाने चुनाव आयोग के जरिये राष्ट्रीय स्तर पर एनआरसी कराने का सरकार का गेम प्लान स्पष्ट रूप से सामने आ रहा है। संसद, राजनीति दलों और लोगों से चर्चा के बिना एनआरसी कराने के लिए सरकार एसआइआर को माध्यम बना रही है और चुनाव आयोग को इसके लिए औजार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।
























