राजस्व की जमीन पर बन गया वन अधिकार पट्टा, क्या जाँच के पश्चात दोषियों के विरुद्ध होगी कार्यवाही !

कोरिया बैकुंठपुर। एमसीबी जिले के बाद कोरिया जिले के बैकुंठपुर विकासखंड के ग्राम चेरवापारा में एक ऐसा मामला सामने आया हैं जहां राजस्व की जमीन पर कुछ राजस्व के कर्मचारियों/अधिकारियों के साथ मिली भगत कर एक दंपत्ति ने वन अधिकार पट्टा बना लिया गया। यह वन अधिकार पट्टा राजस्व भूमि खसरा नम्बर 939 /1 के नाम पर बनवाया गया हैं जो कि कलेक्टर कार्यालय के ठीक पीछे नेशनल हाईवे मार्ग पर हैं।
आश्चर्य की बात यह रही की उक्त जमीन पर ना तो उस व्यक्ति का कभी कब्जा था और ना ही आज भी उस जमीन पर उस व्यक्ति का कब्जा है, लेकिन बावजूद इसके राजस्व की जमीन पर उस व्यक्ति के नाम पर वन अधिकार पट्टा जारी हो गया।जबकि जमीन पर पिछले 30 वर्षों से काबिज एक अन्य व्यक्ति द्वारा कुछ भूमि पर खेती किया जा रहा जबकि अचानक खाते में नाम चढऩे पर काबिज व्यक्तियों को धमका कर खेती से रोका जा रहा हैं और प्रताडि़त किया जा रहा हैं। आपको बता दे की वन अधिकार पट्टा बनने के लिए ग्राम पंचायत से प्रस्ताव पारित करवाना पड़ता है लेकिन बिना प्रस्ताव के ही पटवारी से मिली भगत कर वन अधिकार पट्टा जारी हो गया। विदित हैं कि मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर (एमसीबी) जिले में वन अधिकार पट्टों में गड़बड़ी सामने आने के बाद अब कोरिया जिले में भी इसी प्रकार की अनियमितताओं के संकेत मिल रहे हैं। ग्राम पंचायत चेरवापारा में शासकीय भूमि पर जारी हुए एक वन अधिकार पट्टे ने जिला प्रशासन और विभागीय कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार चेरवापारा की खसरा नंबर 939/1 शासकीय भूमि है, जिस पर वर्षों से कोई दावा-आपत्ति दर्ज नहीं थी। लेकिन हाल ही में एक व्यक्ति को यह जानकारी मिली कि उसके नाम पर साढ़े तीन एकड़ शासकीय राजस्व भूमि का वन अधिकार पट्टा जारी कर दिया गया है। हैरानी की बात यह है कि इस व्यक्ति ने न तो इस भूमि पर कभी खेती की, और न ही उसने वन अधिकार पट्टा पाने के लिए कोई आवेदन दिया था। सबसे बड़ा सवाल यह कि जब जिला कार्यालय, आदिवासी विकास विभाग, एसडीएम कार्यालय और वन विभाग—चारों जगह इस पट्टे से जुड़े दस्तावेज उपलब्ध ही नहीं हैं, तो आखिर यह पट्टा जारी कैसे हुआ? वही वन अधिकार दस्तावेजों पर उस समय के कलेक्टर कोरिया, वन मंडलाधिकारी और आयुक्त के हस्ताक्षर बताए जा रहे हैं। लेकिन वर्ष 2012-13 में जो कलेक्टर पदस्थ थे, उनके हस्ताक्षर इन दस्तावेजों से मेल नहीं खाते, जिससे पूरा मामला संदिग्ध प्रतीत हो रहा है। सूत्रों का कहना है कि यह दस्तावेज फर्जी प्रतीत होते हैं और इनमें उच्चस्तरीय हस्ताक्षरों की भी कथित रूप से नकल की गई है। मामले में पटवारी की भूमिका भी संदेह के घेरे में है।
बताया जा रहा है कि हाल ही में एक पटवारी के स्थानांतरण और एकतरफा भारमुक्त आदेश के बाद इस पूरी गड़बड़ी पर कब्जा करने व पट्टा बनवाने का दबाव के बाद यह राज खुलना शुरू हुआ। ग्रामीणों का कहना है कि यदि समय रहते जांच न हुई तो शासकीय भूमि पर बड़े पैमाने पर अवैध कब्जे और फर्जी पट्टों का मामला सामने आ सकता है। ग्रामीणों व सूत्रों ने मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है ताकि दोषियों की पहचान कर उन्हें कार्रवाई के दायरे में लाया जा सके।

RO No. 13467/ 8