
जांजगीर चांपा। ब्रज गोपिका सेवा मिशन द्वारा आयोजित जगद्गुरुत्तम स्वामी श्री कृपालु जी महाराज के प्रमुख प्रचारक डॉ स्वामी युगल शरण जी के द्वारा विलक्षण दार्शनिक प्रवचन का कल शुभारंभ हुआ। सर्व प्रथम आश्रमवासी सदस्य सौरभ कुमार (खडक़पुर) ने मंच संचालन करते हुए स्वामी के विषय में संक्षिप्त परिचय दिया तत्पश्चात स्वागत
स्वागत के पश्चात पूज्य स्वामी जी को मंच समर्पित किया गया और वे अपने चिर परिचित अंदाज और शैली में प्रवचन प्रारंभ किया।
पूज्य स्वामी जी मानव देह के महत्व पर प्रकाश डालते हुए श्वेताश्वतरो उपनिषद् का एक मंत्र –
तमेव विदित्वातिमृत्युमेति नान्य: पंथा विद्यतेऽयनाय।।की व्याख्या करते हुए बताया कि भगवान को जानकर ही जीव माया से उतीर्ण हो सकता है। और इन जीवात्माओं में केवल मनुष्य ही भगवान को जान सकता है। किन्तु अनादिकाल से जीव भगवान से विमुख है और माया के सन्मुख है। तीन सनातन तत्व है। भगवान, जीव और माया ।
माया से उत्तीर्ण होने का उपाय
जीव का वास्तविक समस्या क्या है, जिसके लिए वह इतना अशांत, अतृप्त, अपूर्ण है। इसका कारण है- माया । भगवान को जानने से हमको माया से छुटकारा मिलेगा। हम जब माया पर विजय प्राप्त कर लेंगे, तब हमारा काम बन जाएगा, हमको शांति मिलेगा, हम तृप्त हो जाएँगे। माया भगवान की शक्ति है। इसलिए भगवान के कृपा बिना हम माया से उत्तीर्ण नहीं हो सकेंगे। उन्होंने कहा कि मानव जीव को क्यों जानें ?84 लाख प्रकार की शरीरों में से एक मात्र मनुष्य शरीर से ही भगवान को जाना जा सकता है, प्राप्त किया जा सकता है। जीव भगवान के अंश है। इसलिए मनुष्य शरीर पाकर यदि भगवान को नहीं जाना तो बहुत बड़ी हानि होगी और फिर करोड़ों कल्प तक मनुष्य शरीर नहीं मिलेगा और 84 लाख प्रकार योनियों में भटकना पड़ेगा।
समस्त योनियों में मनुष्य योनि सबसे दुर्लभ
वेदव्यास जी ने कहा कि मनुष्य शरीर बड़ा दुर्लभ है। शंकराचार्य ने कहा कि तीन चीज़ों का मिलना बहुत दुर्लभ है- मनुष्य शरीर, भगवान को पाने की व्याकुलता एवं महापुरुष मिलना। इन तीनों चीजों के द्वारा ही हमारा काम बनेगा। अनेक प्रकार की शरीर हैं- जलचर, स्थलचर, उभयचर, नभचर, स्वेदज, अण्डज, जरायुज । परंतु केवल मनुष्य शरीर सबसे महत्वपूर्ण है। जितने प्रकार की जीव हैं, उन्हें तीन भाग में विभक्त किया जा सकता है- जड़ जीव, मनुष्येत्तर चेतन जीव और मनुष्य । मनुष्य शरीर का कमाल यह है कि वह सब पर कण्ट्रोल करता है, भगवान को भी गुलाम बना सकता है।
केवल मानव योनि ही कर्म और ज्ञान प्रधान
आहार ,निंद्रा , भय , और विषयभोग जैसे मनुष्य में है वैसे हीं पशुओं में भी पाये जाते हैं । पशु-पक्षियों को भगवान नेचुरल ज्ञान दिया । लेकिन अच्छे-बुरे की सोच-विचार पशु-पक्षियों के पास नहीं है । जगदगुरु कृपालु महाप्रभु ने कहा कि इस चीज में मनुष्य पशु-पक्षियों से बदतर है । फिर भी मानव शरीर सबसे श्रेष्ठ क्यों है , क्योंकि मानव शरीर कर्म प्रधान है और ज्ञान प्रधान है ।
मनुष्य शरीर के दुर्लभत्व का ज्ञान परमावश्क
रामायण में काकभुशुण्डि -गरुड़ सम्वाद में यह वर्णन है कि मनुष्य शरीर सबसे महत्वपूर्ण और मूल्यवान है। एक बार यदि आपको देह के दुर्लभत्व का पता चल जाए, किसी भी वस्तु का मूल्य का ज्ञान हो जाय, आपको पता चल जाय कि यह वस्तु मूल्यवान है, तो फिर आप उस वस्तु के प्रति लापरवाही नहीं कर सकते। यह आपके लिए महत्वपूर्ण हो जाएगा।
देवताओं को भी मानव शरीर की कामना
स्वामी जी ने कहा कि के देवी-देवता भी मनुष्य शरीर चाहते हैं। पर मनुष्य शरीर देवदुर्लभ है। देवताओं के शरीर में क्या विशेषता है ? देवताओं के शरीर दिव्य यानी तेजस् है, ज्ञान का भंडार है, शरीर से खुशबू निकलता है, भूख-प्यास नहीं लगती है, उनका शरीर भूमि को स्पर्श नहीं करता, मल-मूत्र पसीना का निर्गमन नहीं होता, पलक नहीं भंजतीं आदि, देवताओं के शरीर में कितनी बड़ी-बड़ी बातें हैं। परंतु मनुष्य शरीर की ऐसी क्या विशेषता है कि इसको पाने के लिए देवतागण भी लालायित रहते हैं ? मनुष्य शरीर तो नव द्वार युक्त है, रोम-रोम से मल निकल रहा है, इतना गंदा है। फिर भी मनुष्य शरीर क्यों इतना महत्वपूर्ण है और देवता भी मनुष्य शरीर चाहते हैं। मनुष्य के पास एक बड़ी विशेष बात है जो देवताओं के पास नहीं। वह बात क्या है ? केवल मानव शरीर में सबकुछ की प्राप्ति संभव

























