
नईदिल्ली 0८ दिसम्बर ।
पीएम मोदी ने कहा, वंदे मातरम् की 150 वर्ष की यात्रा अनेक पड़ावों से गुजरी है, लेकिन जब वंदे मातरम् के 50 वर्ष हुए, तब देश गुलामी में जीने के लिए मजबूर था। जब वंदे मातरम् के 100 वर्ष हुए, तब देश आपातकाल की जंजीरों में जकड़ा हुआ था, और जब वंदे मातरम् का अत्यंत उत्तम पर्व होना चाहिए था, तब भारत के संविधान का गला घोंट दिया गया था। जब वंदे मातरम् के 100 वर्ष हुए, तब देशभक्ति के लिए जीने-मरने वाले लोगों को जेल की सलाखों के पीछे बंद कर दिया गया था। जिस वंदे मातरम् के गीत ने देश को आजादी की ऊर्जा दी थी, उसके 100 वर्ष पूरे होने पर हमारे इतिहास का एक काला कालखंड दुर्भाग्य से उजागर हो गया।वंदे मातरम पर चर्चा के दौरान पीएम मोदी ने कहा, जिस मंत्र ने, जिस जयघोष ने देश के आज़ादी के आंदोलन को ऊर्जा और प्रेरणा दी थी, त्याग और तपस्या का मार्ग दिखाया था, उस वंदे मातरम् का पुण्य स्मरण करना इस सदन में हम सबका बहुत बड़ा सौभाग्य है। हमारे लिए यह गर्व की बात है कि वंदे मातरम् के 150 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं और हम सभी इस ऐतिहासिक अवसर के साक्षी बन रहे हैं। प्रधानमंत्री ने ब्रिटिश हुकूमत के शासनकाल में गुलामी के दौर का जिक्र करते हुए कहा, अंग्रेजों के उस दौर में भारत को कमजोर, निकम्मा, आलसी बताना एक फैशन बन गया था। हमारे यहां भी कुछ लोग वही भाषा बोलने लगे थे। तब बंकिम दा ने झकझोरने के लिए और सामर्थ्य का परिचय कराने के लिए वंदे मातरम के जरिए लिखा था- त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी, कमला कमलदल विहारिणी, वाणी विद्यादायिनी नमामि त्वाम्, नमामि कमलां, अमलां अतुलाम् सुजलां सुफलां मातरम्॥ वंदे मातरम्! वेदों में भी कहा गया है, माता भूमि पुत्रोऽहं पृथिव्या:। यानी पृथ्वी मेरी माता है और मैं इस माता का पुत्र हूं। भगवान श्रीराम ने भी लंका के वैभव को छोड़ते हुए कहा था- जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी। वंदे मातरम की यात्रा की शुरुआत बंकिमचंद्र जी ने 1875 में की थी। यह गीत ऐसे समय लिखा गया था, जब 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेज सल्तनत बौखलाई हुई थी। भारत के लोगों पर भांति-भांति के दबाव डाले गए।
भारत के लोगों को मजबूर किया जा रहा था। उस समय उनका राष्ट्रगीत था- गॉड सेव द क्वीन। इसे भारत में घर-घर पहुंचाने का षड्यंत्र चल रहा था। ऐसे में समय बंकिम दा ने चुनौती ली। ईंट का जवाब पत्थर से दिया और वंदे मातरम का जन्म हुआ। 1882 में जब उन्होंने आनंदमठ लिखा तो इस गीत का उसमें समावेश किया। हमने इस महत्वपूर्ण विषय पर सामूहिक चर्चा का रास्ता चुना है। जिस जयघोष ने देश की आजादी के आंदोलन को ऊर्जा, प्रेरणा दी, त्याग और तपस्या का मार्ग दिखाया, उस पर हम चर्चा करेंगे। हम सभी का यह सौभाग्य है। हमारे लिए गर्व की बात है कि वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने के ऐतिहासिक अवसर के हम साक्षी बन रहे हैं। यह एक ऐसा कालखंड था, जो हमारे सामने इतिहास की अनगिनत घटनाओं को सामने लेकर आता है। यह एक ऐसा कालखंड है, जब इतिहास के कई प्रेरक अध्याय हम सभी के सामने उजागर हुए हैं। अभी हमने संविधान के 75 वर्ष गौरवपूर्वक पूरे किए हैं। देश ने सरदार वल्लभभाई पटेल और भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती मनाई है। अभी-अभी गुरु तेगबहादुर के बलिदान के 350 वर्ष भी पूरे हुए हैं।


















