
लखनऊ, 1८ मई ।
चुनावी आहट ने पक्ष और विपक्ष के राजनेताओं के बीच कड़वाहट बढ़ा दी है। वे एक-दूसरे पर व्यक्तिगत हमले कर रहे हैं। राणा सांगा, भीमराव आंबेडकर और व्योमिका सिंह पर सियासत अभी ठंडी भी नहीं हुई थी कि डीएनए का नया विवाद सामने आ गया। विशेषज्ञ इसकी जड़ में अगले दो वर्षों में होने वाले पंचायत और विधानसभा चुनावों को मान रहे हैं। उनके मुताबिक आने वाले समय में इन हमलों का तीखापन और बढ़ेगा। राज्यसभा में सपा सांसद रामजीलाल सुमन का राणा सांगा पर दिया बयान खासा विवाद का विषय बना। यूपी की राजनीति इस मुद्दे पर खूब गर्माई। फिर, डॉ. भीमराव आंबेडकर के साथ सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के चेहरे के कोलाज ने राजनीतिक हवा का ताप बढ़ा दिया। इसके बाद ऑपरेशन सिंदूर की सफलता पर प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाली विंग कमांडर व्योमिका सिंह पर सपा नेता रामगोपाल यादव की जातिसूचक टिप्पणी पर सियासी तूफान आ गया। यह मुद्दा थमा भी नहीं था, कि ब्रजेश पाठक के डीएनए पर सपा का आपत्तिजनक बयान पुलिस थाने में दर्ज हो गया। लखनऊ विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के प्रो. संजय गुप्ता कहते हैं कि राजनीति में इस तरह के हमले कोई नई बात नहीं है। जब-जब चुनावों की आहट होती है, तब-तब राजनेता एक-दूसरे हमलावर हो जाते हैं। मानो यह चुनावी तैयारियों का एक अहम हिस्सा हो। ऐसा सिर्फ यूपी या भारत में ही नहीं, बल्कि अन्य लोकतांत्रिक देशों में भी देखने को मिल रहा है।