
नई दिल्ली 22 नवंबर। केंद्र सरकार ने श्रम सुधारों पर अब तक का सबसे बड़ा और अहम बदलाव किया है। मोदी सरकार ने श्रम से जुड़े 29 कानूनों को खत्म कर दिया है। उसके बदले देश 21 नवंबर से देश में चार नए श्रम सुधार कानून लागू किए गए हैं। सरकार ने कहा कि आत्मनिर्भर भारत की दिशा में यह एक बड़ा कदम होगा। माना जा रहा है कि केंद्र सरकार की ओर से किए गए ये बदलाव देश में रोजगार और औद्योगिक व्यवस्था में अहम भूमिका निभा सकते हैं। नए श्रम कानूनों से देश के करीब 40 करोड़ कामगारों को सामाजिक सुरक्षा कवरेज भी मिलेगी। इसका मतलब है कि देश की आधी से अधिक कामगार पहली बार सुरक्षा के दायरे में लाए गए हैं।
वर्तमान में देश में लागू श्रम कानून काफी पुराने हैं। यह 1930-1950 के बीच के हैं। माना जाता रहा है कि पुराने श्रम कानून आर्थिक हितों का ध्यान रखने वाले नहीं हैं। पुराने कानूनों में गिग वर्कर्स, प्लेटफॉर्म वर्क, प्रवासी श्रमिक जैसे टर्म को शामिल नहीं किया गया था। नए कानून के लागू होने के बाद देश के पुराने 29 लेबर कानून समाप्त हो गए। 21 नवंबर को लागू हुए नए लेबर लॉ के अनुसार, किसी भी कर्मचारी को नियुक्ति पत्र देना अनिवार्य है। वहीं, न्यूनतम वेतन का दायरा सभी श्रमिकों तक बढ़ेगा। नए लेबर लॉ में समय पर वेतन देने का कानून भी होगा। सरकार ने तर्क दिया है कि नए कानूनों से रोजगार की शर्तों की पारदर्शिता बढ़ेगी। देशभर में न्यूनतम वेतन लागू होगा। इसका उद्देश्य है कि किसी की भी सैलरी इतनी कम न हो कि वह जीवन यापन ही न कर पाए। गिग वर्क, प्लेटफार्म वर्क और एग्रीगेटर्स को किया परिभाषित नए लेबर कोड में फिक्स्ड-टर्म कर्मचारियों को स्थायी कर्मियों के बराबर वेतन, छुट्टी, चिकित्सा व सामाजिक सुरक्षा के साथ पांच वर्ष के बजाय सिर्फ एक साल बाद ग्रेच्युटी का हकदार बनाया गया है। ‘प्लेटफार्म वर्क’ व ‘एग्रीगेटर्स’ को पहली बार लेबर कोड में परिभाषित करते हुए सभी गिग वर्कस को सामाजिक सुरक्षा देने का प्रविधान किया गया है। इसके लिए एग्रीगेटर्स को वार्षिक टर्नओवर का एक से दो प्रतिशत योगदान करना होगा।खदान मजदूरों समेत खतरनाक उद्योग में काम करने वाले श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा के साथ उनकी आन-साइट सेफ्टी मानिटरिंग के मानक तय किए गए हैं। वस्त्र उद्योग, आइटी व आइटीईएस कर्मी, बंदरगाहों व निर्यात क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिक भी इसके दायरे में लाए गए हैं।
इन्हें हर माह की सात तारीख तक वेतन का भुगतान अनिवार्य रूप से करना होगा। अब साल में 180 दिन काम करने के बाद ही कर्मी सालाना छुट्टी लेने का हकदार होगा। लेबर कोड में विवाद के शीघ्र समाधान पर जोर है। इसमें दो सदस्यों वाले औद्योगिक न्यायाधिकरण होंगे और सुलह के बाद सीधे न्यायाधिकरण में जाने का विकल्प होगा। कंपनियों के लिए सिंगल रजिस्ट्रेशन, सिंगल लाइसेंस और सिंगल रिटर्न, कई ओवरलैपिंग फाइलिंग की जगह लेगा। नेशनल ओएसएच बोर्ड सभी सेक्टर में एक जैसे सुरक्षा और स्वास्थ्य संबंधी मानदंड तय करेगा। 500 से अधिक कामगारों वाली जगहों पर जरूरी सुरक्षा समितियां होंगी, जिससे जवाबदेही बेहतर होगी। छोटी यूनिट के लिए रेगुलेटरी बोझ कम होगा।
सरकार का साफ कहना है कि मौजूदा श्रम कानून बाधा उत्पन्न करने के साथ ही बदलती आर्थिकी और रोजगार के बदलते तरीकों से तालमेल बिठाने में नाकाम रहे। नए लेबर कोड मजदूरों और कंपनियों दोनों को मजबूत बनाते हुए एक ऐसा श्रमबल तैयार करेंगे जो सुरक्षित, उत्पादक और काम की बदलती दुनिया के साथ तालमेल बिठाएंगे।
श्रम मंत्री मनसुख मांडविया ने कहा कि नए लेबर कोड श्रमिकों के कल्याण के लिए ऐतिहासिक निर्णय है, जो विकसित भारत के लक्ष्य को गति देगा। इससे कामगारों को न्यूनतम वेतन, नियुक्ति पत्र और सामाजिक सुरक्षा मिलेगी। कई श्रम संगठनों के विरोध के बावजूद, सरकार का कहना है कि वह श्रमिकों के हितों के लिए प्रतिबद्ध है और राज्यों के साथ मिलकर काम कर रही है।





















