
इस्लामाबाद, १२ मार्च ।
बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) इस क्षेत्र में लंबे समय से सक्रिय कई विद्रोही समूहों में सबसे मजबूत है। अफगानिस्तान और ईरान की सीमा से लगे हुए खनिज संपदा से समृद्ध क्षेत्र बलूचिस्तान में बीजिंग ने ग्वादर बंदरगाह और अन्य परियोजनाओं में निवेश किया है। पहले यह कम विद्रोही था, लेकिन बीते कुछ महीनों में इन्होंने नई रणनीतियों के साथ हमले तेज कर दिए हैं, जिससे काफी लोगों की जानें गईं और पाकिस्तानी सेना निशाने पर आई। यह समूह चीनियों को भी निशाना बनाता है। बीएलए पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिम में स्थित प्रांत बलूचिस्तान की आजादी चाहता है, जो उत्तर में अफगानिस्तान व पश्चिम में ईरान से सटा हुआ है। यह कई जातीय विद्रोही समूहों में सबसे बड़ा है। ये दशकों से सरकार से लड़ रहे हैं। इनका दावा है कि सरकार बलूचिस्तान के गैस और खनिज संसाधनों का अनुचित शोषण करती है। ये स्थानीय संसाधनों पर दावा करते हैं। बलूचिस्तान का पहाड़ी सीमावर्ती क्षेत्र बलूच विद्रोहियों और इस्लामी आतंकवादियों के लिए सुरक्षित ठिकाना और प्रशिक्षण स्थल है। वर्ष 2022 में सेना और नौसेना के ठिकानों पर हमले कर बीएलए ने सुरक्षा एजेंसियों को चौंका दिया था। इसने महिला फियादीनों को तैयार किया और कराची विश्वविद्यालय में चीनी नागरिकों पर हमला और दक्षिण-पश्चिम बलूचिस्तान में बमबारी की। हाल ही में कई बलूच समूहों के एक संगठन ने सभी को एक सैन्य ढांचे के तहत इक_ा करने की कोशिश की। इसका एक निष्क्रिय समूह बीएलए (आजाद) भी हाल के हफ्तों में सक्रिय हुआ है। बीएलए अक्सर बलूचिस्तान में बुनियादी ढांचे और सुरक्षा बलों को निशाना बनाता है। यह कराची जैसे अन्य क्षेत्रों में भी हमले करता है।
यह पाकिस्तान की सेना और चीनी लोगों, खासकर अरब सागर पर रणनीतिक ग्वादर बंदरगाह को निशाना बनाता है, और बीजिंग पर इस्लामाबाद के साथ मिलकर प्रांत का शोषण करने का आरोप लगाता है। बलूचिस्तान चीन के 60 अरब डॉलर के निवेश (सीपीईसी) का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यहां रेको डिक जैसे खनन प्रोजेक्ट शामिल हैं, जिन्हें दुनिया की सबसे बड़ी स्वर्ण और तांबा खदान माना जाता है। यह प्रांत अस्थिरता और सुरक्षा चिंताओं से जूझ रहा है।भारत और पाकिस्तान के अलगाव के बाद 1948 से ही बलूचों के लिए एक अलग देश की मांग के साथ विद्रोह की शुरुआत हो गई थी।
यह संघर्ष 1950 से 1970 के दशकों तक कई चरणों में चला। 2003 में परवेज मुशर्रफ के कार्यकाल के दौरान विद्रोही गतिविधियां काफी बढ़ गईं और उन्होंने बलूची विद्रोहियों के विरुद्ध कई अभियान चलाए। बलूचों द्वारा उनके शोषण और मानवाधिकारों के हनन की शिकायत की जाती रही है।