
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दीपेश ने इस बारे में दिए तर्क
कोरबा। केंद्र सरकार ने दिसंबर 2020, 29 श्रम कानूनों को समेट कर चार श्रम संहिता क्रमश वेतन संहिता 2019, औद्योगिक संबंध सहिता सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य व कार्य शर्त संहिता 2020 में बदल दिया है। इसकी अधिसूचना जारी हो गई है। भारतीय मजदूर संघ को छोडकर देश के सभी केंद्रीय श्रम संगठन ने विरोध किया है।
एटक कोल फेडरेशन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दीपेश मिश्रा ने नाराजगी जताते हुए कहा कि नए कानून से कमजोर श्रमिक मालिकों की दया पर छोड़ दिए गए है। राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ने कहा कि पहले से 20 कर्मचारी काम करते थे तो उस पर फैक्ट्री एबट था किसी फैक्ट्री में 15 लागू होता लेकिन अब उसकी संख्या बढकर 100 कर दी गई है। इससे छोटी कारखाने फैक्ट्री एक्ट कानून के दायरे से बाहर हो जाएंगे। मौजूदा कानून के तहत यदि किसी फैक्ट्री में 100 से अधिक कर्मचारी काम करते हैं तो उसे बंद करने के लिए सरकार की मंजूरी लेनी होती है जबकि नया कोड में यह संख्या 300 कर दी गई है। यानी अब यदि किसी फैक्ट्री में 300 से कम कामगार काम कर रहे हो तो उसे बंद करने के लिए सरकार की मंजूरी की जरूरत नहीं होगी।
इसी तरह वेतन संहिता 2019 में न्यूनतम वेतन अधिनियम 1948, वेतन भुगतान अधिनियम 1936, बोनस भुगतान अधिनियम 1965 तथा समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976 को मिला दिया गया है। अका कहना है कि समान वेतन का सपना दिखाकर मजदूरों के हित में बने कानून को चालाको से खत्म कर दिया है। अभी मजदूरों का न्यूनतम वेतन त्रिपक्षीय कमेटी जिसमें ट्रेड यूनियस, कॉर्पोरेट तथा सरकार के प्रतिनिधियों के माध्यम से निर्धारित होती है परंतु नए वेज कोड में सिर्फ सरकार के नौकरशाह द्वारा मजदूरों का पक्ष जाने बिना ही एक तरफा फ्लोरवेज (न्यूनतम वेतन) तय कर दी जाएगी। उन्होंने कहा कि जिस तरीके से श्रम कानूनों को समेटने का काम किया गया है उसने एक बात साफ होती है कि ट्रेड यूनियनों पर शिकंजा कसने के लिए ही काम किया जा रहा है। ऐसी स्थिति में मजदूरों के आर्थिक और सामाजिक हितों पर असर पडऩा ही है।


















