
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने प्रदेश की न्यायिक व्यवस्था में एक अहम निर्णय लेते हुए तीन वरिष्ठ अधिवक्ताओं को विधिक मान्यता प्रदान की है। उच्च न्यायालय ने अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 16 तथा छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय (वरिष्ठ अधिवक्ताओं के नामांकन) नियम, 2018 के तहत प्रदत्त अधिकारों का उपयोग करते हुए अशोक कुमार वर्मा, मनोज विष्णनाथ परांजपे और सुनील ओटवानी को वरिष्ठ अधिवक्ता (Senior Advocate) के रूप में नामित किया है। यह आदेश तत्काल प्रभाव से लागू कर दिया गया है।
यह नियुक्ति भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित इंदिरा जयसिंह बनाम भारत के सर्वोच्च न्यायालय मामले (दिनांक 12 अक्टूबर 2017) में दिए गए दिशा-निर्देशों के अनुरूप की गई है। उस ऐतिहासिक निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ताओं के नामांकन की प्रक्रिया को पारदर्शी, निष्पक्ष और योग्यता-आधारित बनाने हेतु स्पष्ट मानदंड तय किए थे। उसी के आलोक में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने भी अपनी प्रक्रिया को निर्धारित कर यह निर्णय लिया।
रजिस्ट्रार जनरल मनीष कुमार ठाकुर द्वारा दिनांक 07 अगस्त 2025 को अधिसूचना क्रमांक 15708/एससीडीएसए/2025 के तहत इन तीनों अधिवक्ताओं के नामों की घोषणा की गई। अधिसूचना में बताया गया है कि उच्च न्यायालय की फुल कोर्ट ने विधिक मापदंडों, पेशेवर नैतिकता, अनुभव और विधि क्षेत्र में दिए गए योगदान के आधार पर इस नामांकन को अनुमोदन प्रदान किया है। वरिष्ठ अधिवक्ताओं को अदालत में कुछ विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं, जैसे कि वे वाद में केवल तर्क रखते हैं और आमतौर पर अदालत में बहस करते हैं, जबकि तथ्यात्मक प्रस्तुति उनके कनिष्ठ वकील द्वारा की जाती है। वरिष्ठ अधिवक्ताओं की नियुक्ति न्यायिक प्रक्रिया की गुणवत्ता को सुदृढ़ करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होती है। इस विषय पर हाईकोर्ट अधिवक्ता अमित सोनी ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “वरिष्ठ अधिवक्ता की मान्यता केवल प्रतीकात्मक नहीं होती, बल्कि यह दीर्घकालिक अनुभव, विधिक प्रतिभा और नैतिक आचरण की सार्वजनिक स्वीकृति होती है। इससे न केवल अधिवक्ता समुदाय में प्रेरणा मिलती है, बल्कि न्यायिक कार्य प्रणाली को भी मजबूती मिलती है।”