नई दिल्ली। मुंबई हमले के मास्टरमाइंड तहव्वुर राणा को प्रत्यर्पित कर भारत लाए जाने के बाद एक तरफ तो कांग्रेस श्रेय लेने की होड़ में जुटी है लेकिन विपक्षी दलों और नेताओं का रुख सवाल भी खड़ा करता है। खुद राहुल गांधी या पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की ओर से इस बाबत कोई ट्वीट नहीं हुआ।

राणा की सुनवाई में भेदभाव नहीं होना चाहिए

खुद कांग्रेस के ही नेता व महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चह्वाण ने राणा की वापसी से पहले ही यह अपील कर दी कि राणा की सुनवाई में भेदभाव नहीं होना चाहिए। उनकी इस नरमी पर कांग्रेस के अंदर भी चुप्पी है।
वहीं विपक्षी गठबंधन में शामिल राजद, समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस की चुप्पी भी कई सवाल खड़े करती है। समाजवादी पार्टी की तरफ से सांसद डिंपल यादव ने जरूर खुशी जाहिर की लेकिन राजग सरकार पर सवाल खड़ा करते हुए।
राजद की तरफ से एक प्रवक्ता ने भी लगभग इसी अंदाज में केंद्र सरकार पर ही निशाना साधा। जबकि तृणमूल के नेता अब तक चुप हैं। सच्चाई यह है कि आतंक को लेकर भी राजनीतिक दलों का रुख अलग अलग ही रहा है। वर्ष 2008 में जब यह घटना हुई थी तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिगिविजय सिंह और एआर अंतुले ने पहले इसे भगवा रंग देकर पूरी चर्चा को ही मोड़ने की कोशिश की थी।
दिग्विजय ने इसे आरएसएस से जोड़ने की कोशिश की थी और हेमंत करकरे की मौत के लिए जिम्मेदार ठहराया था और बाद मे वापस लेना पड़ा था। कांग्रेस भी ऐसे बेतुके बयान से असहज हो गई थी। बाद के वर्षों में विकीलीक्स केबल में अमेरिकी राजनयिकों ने कांग्रेस नेताओं के इस रुख को ”घोर राजनीतिक अवसरवादिता” करार दिया था।