
कोरिया पांडवपारा। एसईसीएल पांडवपारा परियोजना में भूमि अधिग्रहण के बदले रोजगार नहीं मिलने से नाराज़ ग्रामीणों ने शुक्रवार को उग्र प्रदर्शन करते हुए मुख्य मार्ग पर चक्का जाम कर दिया। यह विरोध तब और तीव्र हो गया जब कोयला लदा ट्रक जबरन जाम के बीच से निकालने की कोशिश की गई, जिससे एक बड़ा हादसा होते-होते टल गया। प्रदर्शनकारी ग्रामीणों का आरोप है कि वर्ष 1989 और 1992 में उनकी जमीन एसईसीएल द्वारा अधिग्रहित की गई थी। उस समय की पुनर्वास नीति के तहत नौकरी और मुआवजा दिए जाने का आश्वासन दिया गया था, लेकिन आज तक उनका हक नहीं मिला। 15 अप्रैल 2025 को भी इसी मुद्दे पर चक्का जाम किया गया था, जिसके बाद जिला प्रशासन और एसईसीएल प्रबंधन की बैठक में एक माह के भीतर जांच और कार्रवाई का वादा किया गया था। लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि अब तक न नौकरी मिली, न ही मुआवजा, जिससे आक्रोश और गहराता गया। स्थिति तब और बिगड़ गई जब एसईसीएल प्रबंधन की ओर से एक कोयला लदा ट्रक सुरक्षा गार्डों के साथ चक्का जाम के बीच से निकालने का प्रयास किया गया। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, एक ग्रामीण ट्रक की चपेट में आते-आते बचा। प्रदर्शनकारियों ने इसे जानबूझकर की गई लापरवाही बताया और प्रबंधन पर हत्या के प्रयास जैसा गंभीर आरोप लगाया। प्रदर्शनकारी किसानों प्रवीण दुबे, बबन यादव, अवधेश कुशवाहा, मंगलेश्वर, गणेश कुशवाहा, सुमार साय, गोरेलाल सिंह, रामगोपाल कुशवाहा, अश्वनी कुशवाहा, वीरेंद्र कुशवाहा सहित दर्जनों ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि, हम शांतिपूर्वक धरना दे रहे थे, लेकिन प्रबंधन ने जानबूझकर ट्रक से कुचलवाने का प्रयास किया। एसईसीएल के पदस्थ प्रबंधक भूपेंद्र पांडेय ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, यह राज्य शासन का मामला है। हमारा कार्य सिर्फ कोयला परिवहन है। इस मुद्दे में हमारी कोई भूमिका नहीं है। प्रशासन ने की सख्त कार्रवाई स्थिति को नियंत्रण में लेने के लिए एसडीएम, तहसीलदार, पटना टीआई और बैकुंठपुर पुलिस मौके पर पहुंचे। अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक संजय पटेल ने बताया कि करीब 60-70 पुलिसकर्मियों की टीम ने मोर्चा संभाला। विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज किया गया और कुछ लोगों को हिरासत में लिया गया। निष्कर्ष- यह घटना ना केवल प्रशासन और प्रबंधन की लापरवाही को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि किस तरह वर्षों पुराने भूमि अधिग्रहण के मामले आज भी ग्रामीणों की पीड़ा और संघर्ष का कारण बने हुए हैं। अब देखना होगा कि क्या शासन-प्रशासन ग्रामीणों की मांगों को गंभीरता से लेकर समयबद्ध समाधान की ओर कदम बढ़ाएगा या यह आंदोलन और उग्र रूप लेगा।