कोरबा। सर्व आदिवासी समाज का सरकार से बड़ा सवाल यह है कि वह कुछ वर्षों से राष्ट्रीय स्तर पर जनजाति गौरव दिवस मना रही है, लेकिन इसके मायने किसके लिए है। बिरसा मुंडा ने क्रांति की अलख जगाई थी और जल, जंगल, जमीन संरक्षण के लिए विशेष काम किया। आज इसी मुद्दे को लेकर संघर्ष चल रहा है, ऐसा क्यों?
कोरबा में विश्व आदिवासी दिवस पर 5 दिन के कार्यक्रम की रूपरेखा समाज ने बनाई है। इस परिप्रेक्ष्य में मंगलवार को कांफ्रेंस की गई। संरक्षक मोहन सिंह प्रधान ने मीडिया से चर्चा में इस मुद्दे को उठाया। उन्होंने कहा कि बिरसा मुंडा का संघर्ष जनजाति समाज की अस्मिता को लेकर था। जंगलों का संरक्षण आदिवासियों से बेहतर कोई नहीं कर सकता। आज औद्योगिकीकरण के नाम पर जो कुछ चल रहा है वह आदिवासियों को प्रकृति से अलग करने की कोशिश है। कहा गया कि आदिवासियों को पदोन्नति में आरक्षण देने को लेकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के द्वारा निर्देश दिए गए हैं लेकिन इस तरफ अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। उन्होंने बताया कि कोरबा में आदिवासी शक्तिपीठ स्थापित की गई। 2011 से लगातार काम किए जा रहे हैं। बिंझवार, प्रधान, गोंड़ कभी एक साथ नहीं बैठे थे लेकिन हमने इसे पूरा किया। वैचारिक समानता की स्थिति को लेकर भी हम लोग काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कोरबा में विश्व आदिवासी दिवस पर विभिन्न आयोजन किए जाएंगे। इसके माध्यम से बड़ी लकीर खींचने का काम होगा। कांफ्रेंस में अध्यक्ष डीएस पैकरा, निर्मल सिंह, रमेश सिरका के अलावा अन्य प्रतिनिधि उपस्थित थे।