नई दिल्ली। देश के इतिहास में ऐसा पहली बार होने जा रहा है कि अमेरिकी कंपनी अपनी परमाणु प्रौद्योगिकी भारत को हस्तांतरित करने जा रही है। भारत के साथ तनावपूर्ण अमेरिकी संबंधों के बीच ये बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है।

अमेरिका की फ्लोसर्व कॉर्पोरेशन ने भारत की कोर एनर्जी सिस्टम्स लिमिटेड के साथ देश में परमाणु ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए प्राइमरी कूलैंट पंप (पीसीपी) प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण के लिए समझौता किया है।

बिजली उत्पादन में होगी रिकॉर्ड बढ़ोतरी

इस प्रौद्योगिकी की मदद से 2047 तक भारत परमाणु ऊर्जा से 100 गीगावाट बिजली उत्पादन के अपने लक्ष्य को पूरा कर सकेगा। वर्तमान में केवल 8.2 गीगावाट ऊर्जा का उत्पादन परमाणु संयंत्रों के जरिये हो रहा है।

प्राइमरी कूलैंट पंप महत्वपूर्ण चीज

कोर एनर्जी सिस्टम्स के सीएमप्राइमरी कूलैंट पंप महत्वपूर्ण चीजकोर एनर्जी सिस्टम्स के सीएमडी नागेश बसरकर ने बताया कि परमाणु ऊर्जा संयंत्र विकसित करने में सबसे जरूरी सप्लाई चेन होती है। वहीं सबसे जटिल उपकरण रिएक्टर होता है और दूसरी महत्वपूर्ण चीज प्राइमरी कूलैंट पंप होती है। देश में इसका केवल एक ही विक्रेता है, जिससे काफी दिक्कत होती है।डी नागेश बसरकर ने बताया कि परमाणु ऊर्जा संयंत्र विकसित करने में सबसे जरूरी सप्लाई चेन होती है। वहीं सबसे जटिल उपकरण रिएक्टर होता है और दूसरी महत्वपूर्ण चीज प्राइमरी कूलैंट पंप होती है। देश में इसका केवल एक ही विक्रेता है, जिससे काफी दिक्कत होती है।

वहीं प्राइमरी कूलैंट पंप के मामले में फ्लोसर्व मार्केट लीडर है। बसरकर ने बताया कि ऐसा पहली बार है कि अमेरिकी प्रौद्योगिकी भारत को दी जा रही है। इसे सीएफआर 810 स्वीकृति मिल गई है।

इस साल फरवरी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान, दोनों देशों ने अमेरिका-भारत 123 असैन्य परमाणु समझौते को पूरी तरह से लागू करने की बात की थी। मोदी और ट्रंप ने तकनीक के स्थानीयकरण पर जोर दिया था।

तकनीक भारत को मिलने का रास्ता साफ

बसरकर ने बताया कि इससे भविष्य में अमेरिका से ज्यादा से ज्यादा तकनीक भारत को मिलने का रास्ता साफ हो सकेगा। उन्होंने कहा कि अमेरिका से इस महत्वपूर्ण तकनीक के हस्तांतरण का अनुमोदन प्राप्त करने में लगभग पांच साल का समय लगता है।