
यह व्रत शादीशुदा महिलाएं अखंड़ सौभाग्य की प्राप्ति के लिए जबकि अविवाहित कन्याएं मनचाहे वर की कामना के लिए यह व्रत करता हैं। करवाचौथ का व्रत तब ही पूर्ण माना जाता है जब इस कथा का पाठ किया जाता है। यहां पढ़ें करवाचौथ की संपूर्ण कथा।
करवाचौथ व्रत कथा का महात्मय सबसे पहले भगवान शिव से माता पार्वती से कहा था और द्वापर युग में भगवान कृष्ण ने द्रोपदी को सुनाया था। महाभारत का युद्ध आरंभ होने से पहले जब अर्जुन नीलगिरी पर्वत पर तपस्या करने के लिए गए थे तो अर्जुन काफी समय तक वापस ही नहीं लौटा तब द्रौपदी को बड़ी चिंता हुई। तब वह भगवान कृष्ण के पास पहुंची और भगवान कृष्ण ने उन्हें करवाचौथ का व्रत करने की सलाह दी। इस बाद भगवान कृष्ण ने ही द्रौपदी को इसका महात्मय सुनाया था। जो इस प्रकार है। कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ कहते हैं। इसमें गणेश जी, भगवान शिव, माता पार्वती और कार्तिकेय का पूजन करके उन्हें पूजन दान से प्रसन्न किया जाता है। इसका विधान चैत्र की चतुर्थी में लिख दिया है। परन्तु विशेषता यह है कि इसमें गेहूं का करवा भर के पूजन किया जाता है और विवाहित लड़कियों के यहां चीनी के करवे पीहर से भेजे जाते हैं। तथा इसमें निम्नलिखित कहानी सुनकर चन्द्रोद्रय में अर्घ्य देकर व्रत खोला जाता है। एक नगर में साहूकार के सात लडक़े और एक लडक़ी थी। सेठानी के सहित उसकी बहुओं और बेटी ने करवा चौथ का व्रत रखा था। रात्रि को साहूकार के लडक़े भोजन करने लगे तो उन्होंने अपनी बहिन से भोजन के लिए कहा। इस पर बहिन ने उत्तर दिया भाई! अभी चांद नहीं निकला है, उसके निकलने पर अर्घ्य देकर भोजन करूंगी। बहिन की बात सुनकर भाइयों ने क्या काम किया कि नगर से बाहर जाकर अग्नि जला दी और छलनी ले जाकर उसमें से प्रकाश दिखाते हुए उन्होने बहिन से कहा- बहिन ! चांद निकल आया है अर्घ्य देकर भोजन जीम लो। यह सुन उसने अपनी भाभियों से कहा कि आओ तुम भी चन्द्रमा को अर्घ्य दे लो, परन्तु वे इस काण्ड को जानती थीं उन्होने कहा बहिन जी! अभी चांद नहीं निकला, तेरे भाई तेरे से धोखा करते हुए अग्नि का प्रकाश छलनी से दिखा रहे हैं। भाभियों की बात सुनकर भी उसने कुछ ध्यान न दिया और भाइयों द्वारा दिखाए प्रकाश को ही अर्घ्य देकर भोजन कर लिया। इस प्रकार व्रत भंग करने से गणेश जी उस पर अप्रसन्न हो गए। इसके बाद उसका पति सख्त बीमार हो गया और जो कुछ घर में था उसकी बीमारी में लग गया। जब उसको अपने किए हुए दोषों को पता लगा तो उसने पश्चाताप किया। गणेश जी की प्रार्थना करते हुए विधि विधान से पुन: चतुर्थी का व्रत करना आरम्भ कर दिया श्रद्धानुसार सबका आदर करते हुए सबसे आशीर्वाद ग्रहण करने में ही मन को लगा दिया। इस प्रकार उसके श्रद्धा-भक्ति सहित कर्म को देखकर भगवान् गणेश उस पर प्रसन्न हो गए और उसके पति को जीवन दान देकर उसे आरोग्य करने के पश्चात् धन-सम्पत्ति से युक्त कर दिया। इस प्रकार जो कोई छल-कपट को त्याग कर श्रद्धा-भक्ति से चतुर्थी का व्रत करेंगे वे सब प्रकार से सुखी हाते हुए क्लेशों से मुक्त हो जाएगा।