
नईदिल्ली, १६ जुलाई ।
केरल की नर्स निमिषा प्रिया की मौत की सजा को टाल दिया गया है। ये भारत और यमन के धार्मिक नेताओं के दखल के बाद मुमकिन हो सका है। इस सजा को रोकने के लिए ग्रैंड मुफ्ती ऑफ इंडिया शेख अबूबकर अहमद ने यमन के मशहूर आलिम शेख उमर बिन हफीज से मदद मांगी थी। इसके बाद शेख उमर ने अपने शागिर्दों को तलाल के परिवार से बात करने भेजा। कई दौर की बातचीत के बाद, तलाल का परिवार मौत की सजा को टालने के लिए राजी हुआ।इस बातचीत में सबसे अहम यमनी परिवार और शेख उमर का सुन्नी मजहब से ताल्लुक था। यमन की राजधानी सना में हूती विद्रोही का कब्जा है लेकिन शेख उमर के रसूख की वजह से मौत की सजा टल गई।
भारत के विदेश मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि यह काम खामोश और लगातार कोशिशों का नतीजा है। सऊदी दूतावास में यमन के मामलों को देखने वाले एक अधिकारी ने महीनों तक यमनी हुकूमत से बात की। इजरायल-ईरान तनाव ने कुछ वक्त के लिए रुकावट डाली, लेकिन हालात ठीक होने पर फिर से कोशिशें शुरू हुईं। भारत ने तलाल के परिवार को ब्लड मनी के तौर पर भारी रकम देने की पेशकश की। एक अधिकारी ने कहा, अगर ब्लड मनी 2 करोड़ है, तो हमने 20 करोड़ देने की बात कही, फिर भी परिवार राजी नहीं हुआ। फिलहाल फांसी सिर्फ टली है, माफी नहीं मिली है। बातचीत जारी है ताकि ब्लड मनी या कानूनी रास्ते से निमिषा की सजा माफ हो सके।
भारत ने न सिर्फ सियासी, बल्कि मजहबी रास्तों से भी निमिषा को बचाने की कोशिश की। डिप्टी मुफ्ती हुसैन साकाफी ने बताया कि भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में निमिषा को बचाने में अपनी मजबूरी जताई थी। इसके बाद केरल के कुछ नेताओं ने मुफ्ती साहब से यमनी आलिम से बात करने की गुजारिश की, क्योंकि दोनों के बीच अच्छे ताल्लुकात थे। निमिषा प्रिया 2008 में बेहतर कमाई के लिए यमन गई थीं। पहले वह अस्पतालों में काम करती थीं, फिर उन्होंने अपना क्लिनिक खोला। यमनी कानून के मुताबिक, उन्हें एक स्थानीय पार्टनर तलाल अब्दोल मेहदी लेना पड़ा।