उत्तकाशी, 0८ अगस्त।
धराली की वेदना में प्रकृति को न समझने की मानव की बड़ी भूल भी नजर आती है। बेशक खीर गंगा से निकली तबाही ने मानव की बसावट को जमींदोज कर दिया, लेकिन इसमें प्रकृति का कोई दोष नहीं है। उच्च हिमालयी क्षेत्रों में इस तरह की घटनाएं होना सामान्य है, खीर गंगा में भी यही हुआ। असामान्य तो यह है कि हम की प्रकृति की राह में जाकर खड़े हो गए। इसरो की ओर से अब तक जारी किए गए सेटेलाइट चित्र बताते हैं कि जलप्रलय में जो मलबा आया, वह खीर गंगा के मूल कैचमेंट (जलग्राही क्षेत्र) में ही जाकर पसरा और ठहर गया। वरिष्ठ भूविज्ञानी और एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग के एचओडी प्रो एमपीएस बिष्ट के अनुसार, खीर गंगा का कैचमेंट निचले क्षेत्र में 50 से 100 मीटर तक फैला है। श्रीकंठ पर्वत के ग्लेशियर से यह क्षेत्र तीव्र ढाल के साथ खीर गंगा के माध्यम से सीधे जुड़ा है। इससे स्पष्ट होता है कि निचले क्षेत्र में जो भी बसावट हुई, वह वर्तमान की भांति ही दशकों पहले आए मलबे के ऊपर की गई।
अब उसी जलग्राही क्षेत्र में फिर से मलबा पसर गया है। इस तरह देखें तो नदी ने अपना पुरानी क्षेत्र वापस ले लिया है।यानी खीरगंगा अपने मूल स्वरूप में लौट गई है। कुछ ऐसी ही कहानी धराली से एक किलोमीटर आगे हर्षिल घाटी की भी है। हालांकि, वहां आबादी न होने के कारण कोई नुकसान नहीं हुआ। प्रो. बिष्ट आगाह करते हैं कि अब धराली में खीर गंगा के मूल जलग्राही क्षेत्र में अब कोई निर्माण नहीं किया जाना चाहिए। यह हमारे लिए नया सबक भी है कि प्रकृति कभी भी अपना क्षेत्र हमसे वापस ले सकती है। सरकार को धराली में मलबे से भरे-पूरे क्षेत्र की मैपिंग कराकर वहां निर्माण प्रतिबंधित करने होंगे। ताकि हमें फिर धराली जैसा दंश न झेलना पड़े।