
जशपुर। छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में पदस्थ श्रम निरीक्षक सुरेश कुर्रे को विशेष न्यायालय (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम) जशपुर ने तीन साल की कड़ी सजा और 50,000 रुपये का अर्थदण्ड सुनाया है। आरोपी को यह सजा उस समय मिली जब एसीबी (एंटी करप्शन ब्यूरो) ने उन्हें 40,000 रुपये की रिश्वत लेते रंगे हाथ पकड़ा था। शिकायतकर्ता रमेश कुमार यादव, निवासी ग्राम बूढ़ाडांड़ बगीचा, जिला जशपुर, ने 26 सितंबर 2019 को एंटी करप्शन ब्यूरो, बिलासपुर में शिकायत दर्ज कराई थी। शिकायत में बताया गया कि उनकी संस्था छत्तीसगढ़ अभिनन्दन एजुकेशनल एंड सोशल वेलफेयर सोसायटी ने लगभग 320 लोगों को मेशन जनरल और असिस्टेंट इलेक्ट्रिशियन कोर्स में प्रशिक्षण दिया था। प्रशिक्षण पूरा होने के बाद, संस्था ने 6,37,000 रुपये का बिल भुगतान हेतु प्रस्तुत किया। शिकायत में उल्लेख था कि श्रम निरीक्षक सुरेश कुर्रे ने बिल बनवाने और चेक में हस्ताक्षर करवाने के एवज में 1 लाख रुपये की रिश्वत की मांग की थी। बाद में, आरोपी ने राशि बढ़ाकर 1 लाख 90 हजार रुपये कर दी और यह दावा किया कि वह यह पैसा जावा मोटरसायकल खरीदने के लिए लेगा।
शिकायत के सत्यापन के बाद 14 अक्टूबर 2019 को एसीबी ने ट्रैप आयोजित किया। इस दौरान, सुरेश कुर्रे को प्रथम किश्त के रूप में 40,000 रुपये की रिश्वत लेते हुए कार्यालय में रंगे हाथ पकड़ा गया। इस घटना के बाद उनके खिलाफ धारा 7 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (PC Act) के तहत मामला दर्ज किया गया। विवेचना पूरी होने के बाद 26 जून 2020 को विशेष न्यायालय (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम) जशपुर में अभियोग पत्र पेश किया गया। 26 नवंबर 2025 को विशेष न्यायालय ने आरोपी सुरेश कुर्रे को तीन वर्ष के कठोर कारावास और 50,000 रुपये के अर्थदण्ड से दंडित किया। यदि आरोपी यह अर्थदण्ड नहीं चुका पाते हैं, तो उन्हें छह महीने के अतिरिक्त कारावास की सजा भी भुगतनी होगी। अदालत ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि भ्रष्टाचार और सरकारी पद का दुरुपयोग गंभीर अपराध है। किसी भी सरकारी अधिकारी द्वारा रिश्वत लेने की घटना समाज और प्रशासन के लिए घातक है।
यह मामला एसीबी की तत्परता और सजगता का उदाहरण है। शिकायत मिलने पर एसीबी ने तुरंत सत्यापन और ट्रैप कर आरोपी को रंगे हाथ पकड़ा। इस कार्रवाई ने यह संदेश दिया कि सरकारी अधिकारियों द्वारा रिश्वत लेना बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। विशेष न्यायालय ने कहा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत सजा का उद्देश्य केवल आरोपी को दंडित करना नहीं, बल्कि अन्य अधिकारियों के लिए चेतावनी भी देना है।
रमेश कुमार यादव ने बताया कि उनका उद्देश्य केवल प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित कर युवाओं को व्यावसायिक कौशल प्रदान करना था। प्रशिक्षण कार्यक्रम की पूरी प्रक्रिया प्रशासनिक स्वीकृति के साथ हुई थी। बावजूद इसके, सरकारी अधिकारी ने रिश्वत मांग कर कानून और नियमों की अवहेलना की। शिकायतकर्ता ने एसीबी की कार्रवाई की सराहना की और कहा कि इस निर्णय से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा और सरकारी कर्मचारियों में ईमानदारी की भावना जागृत होगी। भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (Prevention of Corruption Act, 1988) सरकारी अधिकारियों द्वारा रिश्वत लेने और अन्य भ्रष्ट आचरण को रोकने हेतु बनाया गया है। इस मामले में एसीबी की सक्रिय भूमिका ने स्पष्ट कर दिया कि कानून के तहत किसी भी सरकारी कर्मचारी को उसके पद का दुरुपयोग करने की छूट नहीं है। विशेष न्यायालय ने फैसला सुनाते हुए कहा कि भ्रष्टाचार समाज में अविश्वास और प्रशासनिक कमजोरी पैदा करता है, और ऐसे मामलों में कठोर कार्रवाई आवश्यक है।































