चरचा कालरी। कोरिया जिले के चरचा कालरी क्षेत्र खदानों से प्रतिदिन निकाले जा रहे लगभग एक लाख लीटर अम्लीय एवं जहरीले पानी को बिना किसी शुद्धिकरण प्रक्रिया के सीधे नालों के माध्यम से झुमका जलाशय में छोड़ा जा रहा है। जिससे बेहद गंभीर जल प्रदूषण फैल रहा है साथ हीआमजन व जलीय जीव जंतुओं का स्वास्थ्य भी बेहद प्रभावित हो रहा है यह वही जलाशय है जो जिले के हजारों लोगों के दैनिक उपयोग, सिंचाई और मवेशियों के पीने के लिए प्रमुख स्रोत है।
चरचा कालरी से निकलने वाले अम्लीय पानी को शुद्ध करने हेतु पूर्व वित्त मंत्री एवं कोरिया जिले के जनक डॉ. रामचंद्र सिंह जूदेव की पहल पर यहाँ एसेडिक वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित किया गया था। इस प्लांट का उद्देश्य था कि फिटकरी, चुना व अन्य रासायनिक प्रक्रियाओं के माध्यम से पानी का पी एच मानक स्तर संतुलित किया जाए ताकि यह जल सामान्य उपयोग के योग्य बन सके।किन्तु अफसोस की बात है कि यह संयंत्र आज सफेद हाथी बनकर रह गया है।सूत्रों के अनुसार, प्लांट संचालन के नाम पर कागजी आंकड़ों में फिटकरी और चुना कीभारी मात्रा में खरीदी की जाती है किंतु उसका उपयोग बहुत कम किया जाता है।
वर्तमान में प्रबंधन ने भले ही दो ट्रीटमेंट प्लांट लगा रखे हों, लेकिन हकीकत यह है कि अधिकांशअम्लीय पानी को ट्रीटमेंट किए बिना ही प्लांट के किनारे बने एक छेद से मोटे पाइपों द्वारा सीधे नाले में बहाया जा रहा है।यह नाला खदान क्षेत्र से होता हुआ छठ घाट और फिर झुमका जलाशय में मिल जाता है। गंदे अम्लीय पानी की वजह से नाले में दोनों ओर कोयले की मोटी परतें जम चुकी हैं, वहीं जगह-जगह सफेद रासायनिक परतें पत्थरों पर दिखाई देती हैं, जो प्रदूषण का साफ संकेत हैं।इस जहरीले पानी का उपयोग स्थानीय मवेशी, गाय-बैल, बकरी एवं अन्य पशु करते हैं, जिससे उनके स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ रहा है। वहीं, जलाशय में मिल रहे रासायनिक तत्वों से मछलियों की मृत्यु और जल गुणवत्ता में निरंतर गिरावट देखी जा रही है। स्थानीय नागरिकों का कहना है कि इस पूरे मामले में चरचा कालरी प्रबंधन की पूर्ण लापरवाही और मनमानी जिम्मेदार है। करोड़ों की लागत से बने झुमका बहुउद्देशीय जलाशय को इस तरह प्रदूषित करना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। जिले की संवेदनशील कलेक्टर से अपेक्षा है कि वे इस विषय पर तत्काल संज्ञान लेकर कार्यवाही करें, ताकि आम जन, पर्यावरण और पशुओं के स्वास्थ्य की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। सवाल यह भी उठता है कि जिले का पर्यावरण विभाग आखिर क्यों आंखें मूंदे बैठा है?क्या जनस्वास्थ्य तब ही जागरूकता का विषय बनेगा जब जलाशय पूरी तरह विषाक्त हो जाएगा?
विशेषज्ञों के अनुसार खदानों से निकलने वाले अम्लीय पानी में सल्फ्यूरिक एसिड रहता है जो पानी के पी एच को अत्यधिक कम करता है इसके अतिरिक्त उसमें मिलने वालाफेरिक आयरन – पानी को लालिमा और धात्विक स्वाद देता है यह भी स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है एल्युमिनियम व मैग्नीशियम सल्फेट्स मवेशियों के लिए विषाक्तहोता है इसी क्रम में आर्सेनिक व मैंगनीज के दीर्घकालिक सेवन से मानव शरीर पर कैंसरजनक प्रभाव पड़ते हैं