नईदिल्ली, 0५ अगस्त ।
नीति आयोग के मुताबिक इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री बढ़ाने के लिए सरकार पिछले 10 सालों में 40,000 करोड़ रुपए का इंसेंटिव दे चुकी है, फिर भी वाहनों की सालाना बिक्री में इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी सिर्फ 7.6 प्रतिशत ही पहुंची है।सरकार ने दस साल पहले वर्ष 2030 तक वाहनों की कुल बिक्री में इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी को 30 प्रतिशत तक ले जाने का लक्ष्य रखा था। यानी कि अब अगले पांच साल में इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी को 22 प्रतिशत तक बढ़ाना होगा जो आसान नहीं है। इस मुश्किल लक्ष्य को हासिल करने के लिए नीति आयोग ने सोमवार को रोडमैप जारी किया। आयोग का मानना है कि इस 22 प्रतिशत के लक्ष्य को हासिल करने पर भारत में 200 अरब डालर के कारोबार का विस्तार होगा जिससे बड़ी संख्या में रोजगार निकलेंगे।आयोग की सबसे प्रमुख सिफारिश है कि सरकार को अब इंसेंटिव का फार्मूला समाप्त कर अनिवार्यता का फार्मूला अपनाना चाहिए। आयोग ने इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीदारी के लिए लोन की उचित व्यवस्था के साथ ई-बस और ई-ट्रक के लिए अलग से कोरिडोर बनाने के लिए कहा है।वहीं, इलेक्ट्रिक वाहनों की लागत को कम करने के लिए बैट्री लीङ्क्षजग प्रणाली शुरू करने और सभी बैट्री का एक आधार या पासपोर्ट नंबर जारी करने की भी सिफारिश की गई है। इलेक्ट्रिक वाहनों में 40 प्रतिशत की लागत बैट्री की होती है। बैट्री को वाहन से अलग कर दिया जाए तो इसकी कीमत काफी कम हो जाएगी। उपभोक्ता बैट्री को एक निश्चित अवधि के लिए लीज पर लेकर अपने वाहन को चला सकेंगे। इस्तेमाल हो रही बैट्री की कीमत का सही मूल्यांकन के लिए सभी बैट्री का एक आधार या पासपोर्ट नंबर जारी करने के लिए कहा गया है ताकि यह पता लग सके कि कौन सी बैट्री कितनी चली है या उसकी कितनी क्षमता बची है और फिर उस आधार पर उसकी कीमत का सही आकलन हो सके।विज्ञान व तकनीकी विभाग की देखरेख में बैट्री आधार का एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया जा सकता है। आयोग ने सरकार को सार्वजनिक बस, सरकारी वाहन और शहरों में माल ढुलाई करने वाले वाहनों को अनिवार्य रूप से इलेक्ट्रिक के दायरे में लाने के लिए कहा है।