
नईदिल्ली, ११ मार्च ।
देश की शीर्ष अदालत ने 40 साल पुराने रेप मामले में अहम फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी के दोष और सजा की पुष्टि करते हुए कहा कि पीडि़ता के निजी अंगों पर चोट न होना आरोप खारिज करने का आधार नहीं है।सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही आरोपी की सजा को बरकरार रखा है। ये मामला 1984 का है। इसमें एक कोचिंग के टीचर पर छात्रा से रेप का आरोप था। आरोपी ने तर्क दिया था कि लडक़ी उसके खिलाफ झूठे आरोप लगा रही है और उसके प्राइवेट पार्ट पर कोई चोट नहीं थी। आरोपी ने अदालत से कहा था कि रेप के आरोप साबित नहीं हो सकते क्योंकि लडक़ी के प्राइवेट पार्ट्स पर कोई चोट नहीं थी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को नकार दिया। जस्टिस संदीप मेहता और प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए अहम टिप्पणी की।पीठ ने कहा कि रेप के हर मामले में निजी अंगों पर चोट नहीं हो सकती। यह किसी विशेष मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है। अदालत ने कहा कि पीडि़ता के निजी अंगों पर चोट का न होना हमेशा अभियोजन पक्ष के मामले के लिए घातक नहीं होता है। आरोपी ने अभियोक्ता की मां के चरित्र के बारे में भी कई दलीलें दी थीं। लेकिन शीर्ष अदालत ने इसे सिरे के खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि कथित अनैतिक चरित्र का केस से कोई संबंध नहीं है और इसे अभियोक्ता की गवाही को बदनाम करने के लाइसेंस के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। 1984 के इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने 1986 में ही अपना फैसला सुना दिया था। ट्रायल कोर्ट ने ट्यूशन टीचर को दोषी ठहराया था। लेकिन मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचा और हाईकोर्ट ने 26 साल बाद ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा।
वहीं सुप्रीम कोर्ट ने 15 साल में ये फैसला सुनाया।