
हितग्राहियों को लाभ देने में नहीं है निजी बैंकों की रुचि
सीताराम नायक
जांजगीर-चांपा। एक ओर जहां निजी बैंक प्रबंधकों द्वारा अधिकारियों की मिली भगत से शासन का खाता अपने बैंकों में खुलवा लेते हैं तो वहीं दूसरी ओर निजी बैंक के प्रबंधकों द्वारा लोगों को शासन की योजनाओं का लाभ देने में आनाकानी की जाती है जिसके कारण शासन की योजना लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाती। वही सैकड़ो की संख्या में लोग रोजगार से वंचित हो जाते हैं। जिसके लिए बहुत हद तक जिले के विभाग प्रमुख जिम्मेदार हैं, जो निजी हित साधकर उक्त निजी बैंकों में सरकारी खाते खोल रखे हैं। ऐसे अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई किए जाने की आवश्यकता है।
इस संबंध में अवगत हो कि(पीएमईजीपी)प्रधानमंत्री रोजगार सृजन योजना एवं (पीएमएफएमई) प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उन्नयन योजना का संचालन सरकार द्वारा किया जा रहा है ताकि लोग सरकार से आर्थिक सहयोग लेकर आत्मनिर्भर बन सके परंतु इन उद्देश्यों की पूर्ति अधिकारियों के निजी लालच के कारण नहीं हो पा रही है क्योंकि जहां निजी बैंकों के प्रबंधकों द्वारा जरूरतमंदों को ऋण देने में आना-कानी की जाती है वहीं अधिकारी सब्सिडी का लाभ देने में काफी देर लगा देते हैं जिसके कारण युवा वर्गों को रोजगार नहीं मिल पा रहा है। ज्ञात होगी प्रधानमंत्री रोजगार सृजन योजना अंतर्गत बिना गिरवी के 10 लाख रुपए तक की राशि देने का प्रावधान है वही गिरवी के आधार पर करोड़ों रुपए का ऋण दिया जा सकता है। परंतु बैंक प्रबंधकों की लापरवाही के कारण जरूरतमंदों को योजना के तहत ऋण देने में आनाकानी की जाती है वही पूंजी पति लोगों को निजी बैंक के संचालकों द्वारा अधिक महत्व प्रदान किया जाता है। इससे बेरोजगार जरूरतमंद लोग पीछे रह जाते हैं। इसी तरह प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उन्नयन योजना संचालित है जिसे मानव कल्याण तथा पशु संरक्षण के लिए राशि एवं सामग्री उपलब्ध कराई जाती है, किंतु इस योजना में भी हितग्राही आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं जबकि सैकड़ो की संख्या में लोग आज भी इस योजना के माध्यम से आत्मनिर्भर होना चाह रहे हैं।
यहां यह बताना आवश्यक है कि प्रधानमंत्री रोजगार सृजन योजना अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में 35 प्रतिशत एवं शहरी क्षेत्र में 25 प्रतिशत राशि का सब्सिडी दिया जाना है परंतु सब्सिडी के अधिकतर राशि का लाभ संबंधित विभाग के अधिकारी लाभ दिलाने के आवाज में ले लेते हैं। इतना ही नहीं बल्कि इस योजना में सब्सिडी का लाभ 60 दिनों में मिल जाना चाहिए उसे जिला उद्योग केंद्र के अधिकारी द्वारा साल 2 साल में भी नहीं दिया जा रहा है जिसके कारण जरूरतमंद लोग अपनी आर्थिक तंगी से उबर नहीं पा रहे हैं। इसी तरह प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उन्नयन योजना के सब्सिडी का लाभ एक माह में मिल जाना चाहिए । परंतु अधिकारियों के सुस्त रवैया के कारण कई महीने तक कार्यालय का चक्कर काटने के बाद भी हितग्राहियों को नहीं मिल पा रहा है नतीजा यह है कि शासन की यह महत्वपूर्ण योजना केवल फाइलों में दम तोड़ती नजर आ रही है। जो कहने एवं सुनने में तो अच्छा लगता है परंतु इसका जमीनी हकीकत कुछ और बयां कर रहा है। जो लोग अधिकारियों को समय पर रिश्व्त देते हैं उनका काम समय पर हो जाता है और जिन लोगों के पास चढ़ावा देने के लिए रकम नहीं होता उन्हें केवल जिला उद्योग केंद्र का चक्कर ही काटना पड़ता है।
खाता खोलने में विभाग प्रमुख दोषी
देखा जाए तो सरकार के पास 60 से अधिक विभाग संचालित हैं जिसे शासन द्वारा विभिन्न योजनाओं के माध्यम से राशि उपलब्ध कराई जाती है ताकि वह जमीनी स्तर पर हितग्राहियों को लाभ दिला सके। लेकिन इन विभाग के प्रमुखों के बैंक के खाते सरकारी बैंकों में नहीं होकर निजी बैंकों में अधिक खोले जा रहे हैं क्योंकि सरकारी खाते में बड़ी राशि होने के कारण इसका लाभ निजी बैंकों को अधिक होता है इसलिए वह शासकीय खाते का संचालन अपने बैंकों में करवाते हैं । प्रारंभिक तौर पर निजी बैंक प्रबंधकों द्वारा बड़ी-बड़ी बातें करके शासकीय खाते तो खुलवा लेते हैं लेकिन योजना का लाभ दिलाते समय उनके सामने बहाने बाजी की लंबी सूची होती है क्योंकि उक्त निजी बैंक प्रबंधकों द्वारा शासकीय खाता खोलने के लिए विभाग प्रमुखों की खुलकर सेवा की जाती है जो लालच में आकर एवं निजी लाभ देखकर शासकीय खाते को सरकारी बैंकों में ना खोल के निजी बैंकों में खोल देते हैं जिसके कारण अधिकतर शासन की योजनाएं दम तोडऩे लगती है। यह हाल जिला उद्योग केंद्र के अंतर्गत संचालित योजनाओं के संचालन में देखने को मिल रहा है जहां सब्सिडी की राशि नहीं होने का बहाना बनाकर जिला उद्योग केंद्र के अधिकारी हितग्राहियों को ब्लैकमेलिंग करते हैं तो वही निजी बैंकों के संचालक एवं प्रबंधक मुक्त अधिकारी से मिली भगत कर योजना का लाभ दिलाने से वंचित करते रहते हैं जबकि सरकारी खाते का संचालन केवल सरकारी बैंकों में ही होना चाहिए।